घोघड़,30 चम्बा दिसम्बर : हिप्र में कल से शीतकालीन अवकाश वाले स्कूलों में डेढ माह का अवकाश आरम्भ हो गया है परंतु अवकाश के बाद प्रारम्भ होने वाले शैक्षिणिक सत्र में कुछ विद्यालयों ने शिक्षा के पुराने ढर्रे को त्याग कर नये तरीके से शिक्षा प्रदान करने का बीड़ा उठाया है। भरमौर शिक्षा खंड के रावमापा भरमौर, रावमापा (बालिका) भरमौर व रामापा पंजसेई की स्कूल प्रबंधन समितियों ने फरवरी 2024 से आरम्भ होने वाले शैक्षणिक सत्र में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्रदान करने की तैयारी कर ली है। इन स्कूलों की एसएमसी ने इस आशय के प्रस्ताव पारित किए हैं।
बालिका रावमापा भरमौर के प्रधानाचार्य कुलदीप शर्मा ने कहा कि उनके विद्यालय में इस समय छठी से बाहरवीं तक 196 छात्राएं शिक्षा ग्रहण कर रही हैं । जबकि अभिभावक चाहते हैं कि समय के अनुसार लड़कियों को अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दी जानी चाहिए इसलिए इस संदर्भ में प्रस्ताव पारित कर निर्णय लिया गया है कि फरवरी 2024 से आरम्भ होने वाले शैक्षणिक सत्र में छठी से आठवीं कक्षा तक गणित विषय को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाया जाएगा जबकि अंग्रेजी माध्यम से विज्ञान विषय केवल छठी कक्षा में आरम्भ किया जाएगा। प्रधानाचार्य ने कहा कि स्कूल में विज्ञान विषय का अध्यापक न होने के कारण यह निर्णय लिया है । अगर सरकार फरवरी माह तक विज्ञान विषय के अध्यापक की तैनाती कर देती है तो विज्ञान विषय को भी सभी कक्षाओं में अंग्रेजी माध्यम से ही पढ़ाया जाएगा।
उधर दूसरी ओर रावमापा भरमौर में भी आज स्कूल प्रबंधन समिति की बैठक का आयोजन कर अगले शैक्षणिक सत्र से अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने का प्रस्ताव पारित किया गया है । संस्थान की प्रधानाचार्य अरुणा चाढ़क ने कहा कि इस संस्थान में फरवरी 2024 से सभी कक्षाओं (छठी से बाहरवीं तक) में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने की तैयारी की गई है। उन्होंने कहा कि यह संस्थान सह शिक्षा (CO-EDUCATION) पद्धति पर शिक्षा प्रदान करता रहा है। अत: इस संस्थान में लड़कियों को भी दाखिल करवाया जा सकता है। प्रधानाचार्य ने कहा कि नये शैक्षणिक सत्र में छात्र-छात्राएं अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने के लिए किसी भी कक्षा में दाखिला ले सकते हैं। उन्होंने कहा कि लड़कियों को मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए उन्हें लड़कों साथ कक्षा में बैठकर शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। गौरतलब है कि कन्याओं के लिए अलग उच्च स्कूल स्थापित होने से पूर्व छात्र-छात्राएं एक साथ इस विद्यालय शिक्षा ग्रहण करते रहे हैं।
राजकीय माध्यमिक विद्यालय पंजसेई ने भी फरवरी माह से अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्रदान करने के संदर्भ में स्कूल प्रबंधन समिति ने प्रस्ताव पारित किया है। संस्थान के मुख्याध्यापक पंजाब सिंह ने कहा कि सभी अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाने के इच्छुक हैं । उन्होंने कहा कि एसएमसी का प्रस्ताव स्कूल शिक्षा बोर्ड को भेजकर अंग्रेजी माध्यम की किताबें मंगवाई जाएंगी।
शिक्षा मानव के व्यक्तित्व को निखारती है। शिक्षा का स्तर यह निर्धारित करता है कि मानव अपना, परिवार, समाज, राष्ट्र व विश्व के लिए किस प्रकार व कितना योगदान दे सकता है। हर इनसान चाहता है कि उसके बच्चे गुणात्मक शिक्षा पाएं और देश, समाज व अपने परिवार की सम्पन्नता में योगदान देने में सक्षम बने। सरकारों ने भी शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए कई कदम उठाए जिसमें शिक्षा में निजि क्षेत्र को शामिल करना था जोकि अंग्रेजी भाषा के माध्यम से शिक्षा प्रदान कर रहा था।
आधुनिक काल में स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्रदान करने के कई कारण हैं :
वैश्विक संवाद : अंग्रेजी वैश्विक संवाद की भाषा है और इससे विद्यार्थियों को वैश्विक स्तर पर जुड़ने का अवसर मिलता है। यह उन्हें विदेशी शिक्षा और करियर के लिए तैयार करता है।
विज्ञान और तकनीक में नवाचार : आधुनिक विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में नवाचारों की जानकारी अक्सर अंग्रेजी में होती है, जिससे विद्यार्थियों को इस क्षेत्र में अग्रणी बनने का अवसर मिलता है। ऐसे कई कारणों से अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा आधुनिक काल में एक महत्वपूर्ण और आवश्यक है।
अंतरराष्ट्रीय विद्यालयों और कॉलेजों की मांग : अंग्रेजी में पढ़ाई करने वाले छात्रों की मांग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रही है। इससे छात्रों को अंतरराष्ट्रीय शिक्षा और करियर के लिए अच्छी तैयारी मिलती है।
तकनीकी साहित्य का अध्ययन : वैज्ञानिक और तकनीकी गतिविधियों के क्षेत्र में अंग्रेजी भाषा में लेखित सामग्री का अध्ययन करना आवश्यक है।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार और राजनीति : अंग्रेजी भाषा अंतरराष्ट्रीय व्यापार और राजनीति में संवाद के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है। इससे विद्यार्थियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समझदारी प्राप्त होती है।
करियर के अवसर : अंग्रेजी में शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अधिक अवसर मिलते हैं।
सामाजिक सामंजस्य : विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न भाषाएं बोली जाती हैं, लेकिन अंग्रेजी सामाजिक सामंजस्य बनाए रखने के लिए एक सामंजस्यपूर्ण भाषा के रूप में कार्य करती है।
सरकारी स्कूलों का अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा की ओर कदम बढ़ाने के कारण : गुणात्मक शिक्षा के लिए भाषा कितना महत्व रखती है सरकार को यह जानने में तीन दशकों से अधिक का समय लग गया है और अब सरकार द्वारा पहली व दूसरी कक्षा में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने की घोषणा की गई है। इन तीन दशकों की अवधि शिक्षा पाने वाले धन सामर्थ्य वाले छात्र महंगे दामों पर अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ लिए व जिनके पास धन नहीं था लेकिन अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा ग्रहण करना चाहते थे उन्हें हिन्दी माध्यम से पढ़ने के लिए विवश होना पड़ा फलस्वरूप वे संसाधनों के अभाव में अपनी रुचि अनुसार नहीं पढ़ पाए। निजि स्कूलों के उदय से हुआ यह कि एक ओर छोटे-छोटे कस्बों तक में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने वाले स्कूल खुल गए और हिंदी माध्यम के सरकारी स्कूलों से बच्चे इन पब्लिक स्कूलों में दाखिल होने लगे। अंग्रेजी माध्यम वाले यह पब्लिक स्कूल ज्यादातर दसवीं कक्षा तक हैं जबकि बाहरवीं कक्षा तक के निजि विद्यालय शहरी प्रकार की जीवनशैली वाली जनसंख्या घनत्व वाले स्थानों तक ही सीमित हैं। फलस्वरूप जिन स्थानों पर निजि स्कूल खुलते गए वहां सरकारी स्कूलों के आसपास के सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या लगातार गिरती गई।
अब सरकारें भी चाह रही थीं कि सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ाई जाए परंतु कैसे, इस सवाल का जबाव शायद जानते हुए भी हल नहीं करना चाहती थीं। पहले सरकार ने कहा कि सरकारी स्कूलों के बच्चों की वर्दी भी निजि स्कूलों के बच्चों की तरह आकर्षक हो। मुफ्त किताबें, वर्दी, दोपहर का भोजन वजीफा, स्कूलों में स्मार्ट क्लासें आदि कार्यक्रम चलाने के बावजूद सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या में बढ़ौतरी नहीं हुई । जबकिअंग्रेजी माध्यम वाले निजि स्कूलों में पढ़ाने के लिए दूर-दराज के गांवों से लोग निजि स्कूल के नजदीक किराये के भवनों में रहने लगे हैं। जिससे उन्हें आर्थिक व मानसिक नुकसान भी उठान पड़ रहा है।
ऐसे में सरकारी स्कूलों ने अब उस कारण को ही समाप्त करने की ओर कदम बढ़ाया है जिसके लिए लोग सरकारी स्कूलों से किनारा कर रहे थे।
बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दिलवाना अभिभावक क्यों मानते हैं आवश्यक ? सरकारी, निजि हो या कॉरपोरेट जगत, सब जगह लगभग अंग्रेजी भाषा में ही कार्य होता है। जिसकी अंंग्रेजी भाषा पर पकड़ है उसे आसानी से काम मिल जाता है। वैसे भी समाज में अंग्रेजी भाषा में बात करने वाले का रुतबा अलग प्रकार का माना जाता है। सोशल मीडिया में प्रचलित प्रश्न कि अध्यापक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाते, की समीक्षा के दौरान अध्यापकों ने घोघड़ को बताया कि कम्पयूटर, विज्ञान, गणित की शब्दावली अंग्रेजी भाषा में है जिसे हिन्दी भाषा में नहीं बदला जा सकता, सरकारी, गैरसरकारी, निजि क्षेत्र में सारा काम काज अंग्रेजी भाषा में होता है तो बच्चों को उसी भाषा में शिक्षा देनी चाहिए । उनका तर्क है कि आवासीय विद्यालयों को छोड़कर सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा नहीं दी जाती। ऐसे में वे अपने बच्चों को भी अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दिलाना चाहते हैं । चूंकि हिप्र स्कूल शिक्षा बोर्ड के अधिकांश स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा की व्यवस्था नहीं है इसलिए वे अपने बच्चों को निजि विद्यालयों में पढ़ाने को बाध्य हैं। हालांकि कुछ अभिभावक अध्यापकों का कहना था कि वे अपने बच्चों को महंगे निजि स्कूलों में पढ़ाने का सामर्थ्य रखते हैं व यह उनका निजि फैसला है।
अभिभावक इसी दृष्टिकोण के तहत अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्रदान करने वाले निजि स्कूलों में दाखिल करवा रहे हैं।अभिभावकों की माने तो सरकारी स्कूल अगर अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देना आरम्भ करें तो वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने को तैयार हैं। उनका मानना है कि सरकारी स्कूलों में कम होती विद्यार्थियों की संख्या का मुख्य कारण उनका अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा न देना है।
अभिभावकों की राय पर उपमंडल के रावमापा भरमौर व कन्या वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला व रामापा पंजसेई ने अगले शैक्षणिक सत्र में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने का निर्णय लिया है। इन विद्यालयों के प्रधानाचार्यों का कहना है कि अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने में अध्यापक तो सक्षम हैं परंतु अंग्रेजी माध्यम आरम्भ करने के लिए अभिभावकों का समर्थन आवश्यक है। उन्होंने पांचवी कक्षा से उत्तीर्ण हुए विद्यार्थियों के अभिभावकों से अपील की है कि वे अपने बच्चों को छठी कक्षा में दाखिले के लिए अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा आरम्भ करने वाले इन विद्यालयों में दाखिल करवाएं।