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घोघड़, शिमला 08 अप्रैल : हिमाचल प्रदेश की जलवायु पारिस्थितिकीय तंत्र सेब की खेती के लिए उपयुक्त है, और इसी कारण सेब उत्पादन और बागवानी पिछले 70 से 80 वर्षों में यहां समुचित रूप से फली-फूली है और वर्तमान समय में यह प्रदेश की आर्थिकी में एक महत्वपूर्ण और बड़ा स्थान रखती है, जिसके अंतर्गत न केवल सेब उत्पादक ही एक अच्छा रोजगार कमा रहे है बल्कि इस कार्य से जुड़े मजदूर, व्यापारी एवं वाहन मालिक भी अच्छी खासी कमाई करते है। संक्षेप में कहे तो सेब बागवानी लाखों लोगों को रोजगार मुहैया करवाती है और साथ ही प्रदेश की अर्थव्यवस्था में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान निभाती है। यह राज्य की जीडीपी में सालाना 5 हजार करोड़ रुपये का योगदान देती है। इसके अतिरिक्त हिमाचल के 5 लाख से अधिक लोग सीधे तौर पर इससे जुड़े हुए है।

परम्परागत तरीके से हिमाचल में सर्वप्रथम राॅयल सेब की खेती से सेब के कारोबार में पहचान मिली। सर्वप्रथम एक अमेरिकी नागरिक सैमुअल इवान स्टोक्स ने कोटगढ़ क्षेत्र में राॅयल सेब को उगाया था। उसके बाद जैसे-जैसे सेब की खेती का क्षेत्र विस्तृत होता गया वैसे-वैसे राॅयल सेब को जिला शिमला एवं किन्नौर के अलावा अन्य स्थानों पर भी उगाया जाने लगा और वर्तमान में सेब बागवानी के लगभग 90 प्रतिशत हिस्से में राॅयल किस्म के सेब का ही दबदबा है। राॅयल डिलिशियस प्रजाति का एक फल है जो गहरे लाल रंग का होता है और इसका स्वाद अन्य किसी भी प्रजाति के सेब से अधिक होता है। साथ ही इसमें रस भी सबसे अधिक होता है। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह लम्बे समय तक खराब नहीं होता और इसे वातानुकूलित स्टोर में 8 से 10 महीनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है, जबकि अन्य प्रजातियों में यह गुण नहीं पाया जाता।

 

रॉयल डलिसियस के लिए चुनौतियां

राॅयल सेब का पेड़ सामान्यतः 8 से 10 वर्ष में फसल देना प्रारम्भ कर देता है। यदि उचित देखभाल की जाए तो इसकी आयु लगभग 50 वर्ष या उससे कुछ अधिक होती है। इसके पेड़ का आकार काफी बड़ा होता है और कुछ पुराने वृक्षों की ऊंचाई तो 50 फुट से भी ऊपर देखी गई है। इसी कारण इसमें फल उत्पादन भी बड़ी मात्रा और अच्छी गुणवता वाला होता है।

किन्तु इन सब विशेषताओं के बावजूद पिछले कुछ वर्षों में राॅयल सेब उत्पादन में बागवानों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसका कोई एक कारण नहीं बल्कि अनेक कारण हैं। मुख्यतः मौसम परिवर्तन इसके लिए एक बड़ी चुनौती है। क्योंकि पिछले कुछ वर्षो में विशेषकर 90 के दशक से वैश्विक तापमान में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई है, जिसका प्रभाव सेब बागवानी विशेषकर राॅयल सेब पर देखा जा रहा है। उच्च गुणवता का उत्पाद प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि दिसम्बर से फरवरी माह के बीच सेब को लगभग 1800 घण्टे ”चिलिंग ऑवर्स” मिले किन्तु कम बर्फबारी और गर्म तापमान की वजह से यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो पा रही है। इसके साथ भूमि में अत्यधिक रासायनिक उर्वरक, कीटनाशकों एवं अन्य दवाइयों के उपयोग के कारण सेब के उत्पादन एवं गुणवता में दिनों दिन गिरावट देखी जा रही है। इसके अतिरिक्त राॅयल सेब को पूरा तैयार करने में बहुत सारा श्रम व समय लगता है किन्तु परिणाम आशा अनुरूप नहीं आ रहा है।

उच्च घनत्व की खेती से आशय यह है कि एक भूमि के टुकड़े पर जहां राॅयल सेब के केवल 15 से 20 पेड़ लगाए जा सकते है, वहीं उच्च घनत्व के आधार पर उसी भूमि के टुकड़े पर 60 से 70 अथवा 100 पेड़ तक लगाए जा सकते है। इस प्रकार की खेती को वर्तमान समय की मांग माना जा रहा है। यदि हम इस व्यवस्था की विशेषताओं की बात करें तो इसमें अधिकतर स्पर किस्म जैसे रेड चीफ, स्कारलेट-1, स्कारलेट-2, एड्मस-1 जैसी अन्य किस्मों को उगाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त गाला प्रजाति के सेब जैसे रेडलम गाला, गेल गाला इत्यादि अन्य किस्मों को उगाया जा रहा है। इस पौधे की विशेषता यह है कि यह किस्म, रंग और स्वाद में बेहतर है और पौधारोपण के लगभग तीसरे और चौथे वर्ष में फसल देना प्रारंभ करते है, जो कि उत्पादक के लिए अच्छी बात है क्योंकि उसे कम समय में ही अपनी लागत को पूरा करने का अवसर मिल जाता है। इसके अतिरिक्त लघु एवं सीमांत बागवान जिसके पास कम भूमि है वह इस नई तकनीक से अधिक कमाई कर सकता है। उच्च घनत्व में उगाई जाने वाली सेब की किस्मों को राॅयल के मुकाबले कम चिलिंग आवर्स की आवश्यकता होती है, जिसमें कि वे अधिक तापमान में भी अच्छा प्रदर्शन कर सकती है।

सभी तथ्यों से यह प्रतीत होता है कि सेब की बागवानी में मानव के साथ-साथ बदलती प्राकृतिक परिस्थितियों एवं मानव क्रिया कलापों से चुनौतियां तो बढ़ी हैं किन्तु हमें इसके समाधान की ओर भी देखना होगा। सेब की मध्यम एवं उच्च घनत्व की खेती एक विकल्प के तौर पर अवश्य देखी जा रही है किन्तु इसकी भी अपनी चुनौतियां है। मुख्य रूप से बदलता मौसम और भूमि की उर्वरकता का क्षय इसके अतिरिक्त बाजार का व्यवहार भी इसके अनुकूल होना चाहिए। यद्यपि वर्तमान सरकार इस विषय पर गंभीर है और बागवानी विभाग की ओर से समय-समय पर बागवानों को उचित प्रशिक्षण और नई तकनीक की जानकारी उपलब्ध करवाई जा रही है। सरकार की ओर से युवाओं को इस ओर आकर्षित करवाने के उद्देश्य से नई-नई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिसमें कि हि0 प्र0 राज्य सहकारी बैंक लिमिटेड के माध्यम से 1 बीघे पर 9 लाख रुपये का ऋण प्रदान किया जा रहा है, जिसकी अदायगी 5 वर्षों के बाद की जाएगी जब तक पौधा फसल देने योग्य न हो जाए। इसके अतिरिक्त सिंचाई एवं बाड़ाबंदी के लिए भी विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही है। कीटनाशकों एवं अन्य दवाइयों पर भी अनुदान फिर से प्रारंभ किया गया है जिससे कि बागवानों को उचित मूल्य पर यह दवाइयां उपलब्ध हो रही हैं। बागवानी विभाग और बागवानी से जुड़े अन्य विश्वविद्यालय एवं संस्थान इस संबंध में नित नये शोध कर रहे हैं।
यह तो सर्वविदित है कि सेब बागवानी हिमाचल की आर्थिकी की रीढ़ है और वर्तमान समय में संकट से भी जूझ रही है किन्तु इस व्यवसाय से जुड़े प्रत्येक हितधारक को यह सुनिश्चित करना होगा कि बदलते समय के साथ नई तकनीक और नये शोध हमें इस संकट से उबारने मे सहायक होंगे।  फिर भी जन सामान्य की सहभागिता और जागरूकता अति आवश्यक है तभी हमारी सेब की अर्थव्यवस्था एक सशक्त और मजबूत व्यवस्था के रूप में पूरे विश्व के साथ खड़ी हो सकेगी।

विषय विशेषज्ञ उद्यान विभाग शिमला व मास्टर ट्रेनर डाॅ. कुशाल सिंह मेहता ने कहा कि हिमाचल प्रदेश की सेब बागवानी का भविष्य उच्च घनत्व की खेती है। उनका मानना है कि बढ़ती जनसंख्या और जमीन के घटते हुए आकार के कारण उच्च घनत्व बागवानी वर्तमान समय की जरूरत बन चुकी है। इसके साथ मौसम के बदलाव के कारण हमारी पारम्परिक सेब की खेती को अनुकूल परिस्थितियां नहीं मिल रही, जिसके कारण उत्पादन में कमी और अच्छी गुणवत्ता न होने के कारण बाजार में भी अच्छे दाम नहीं मिल पा रहे, जिससे बागवानो को नुकसान हो रहा है। ऐसे में नई किस्म के पौधों की खेती करना जरूरी है, जिससे कि गुणवता में भी सुधार हो और बाजार में भी अच्छा मूल्य मिल सके। उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश बागवानी विभाग इस विषय में गंभीरता से कार्य कर रहा है और सरकार की सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ते हुए युवाओं को इस उद्योग से जुड़ने के लिए उन्हें बागवानी विभाग द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है और बागवानी से जुड़े सभी तकनीकी पहलुओं की जानकारी और प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि विश्व भर में जहाँ भी सेब उगाया जाता है वहाँ अब नई वैज्ञानिक विधियां अपनाई जा रही है, जिससे कि कम संसाधनों में अधिक गुणवत्तायुक्त फल बड़ी मात्रा में पैदा किये जा रहे है और विश्व बाजार की प्रतियोगिता में टिके रहने के लिए हमें भी नये ढंग से सेब की बागवानी करनी होगी, जिससे की यह उद्योग सशक्त और बेहतर बन सके।


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