घोघड़, चम्बा 09 नवम्बर : हिप्र के जनजातीय क्षेत्र भरमौर के सचूईं गांव का 13 वर्षीय मुसाफिर राम ने अपने पिता द्वाना राम से अपना पारम्परिक वाद्ययंत्र पौण बजाना सीखना आरम्भ किया था और अगले 61 वर्ष तक उनकी अगुलियां पौण की गूंज बढ़ाती रहीं। 74 वर्ष की आयु तक पहुंचते पहुंचते पौण वादन कला में उन्हें इतनी महारत मिल चुकी थी कि भारत सरकार ने वर्ष 2014 में उन्हें पौण वादन के लिए पदमश्री से सम्मानित किया।
बीती रात पंजाब के दुनेरा नामक स्थान स्थित अपने आवास में उन्होंने अंतिम सांस ली। लम्बे समय से अस्वस्थ चल रहे मुसाफिर राम भारद्वाज ने 103 वर्ष की आयु पूरी की है।
वर्ष 2010 में राष्ट्र मंडल खेलों के दौरान दिल्ली में पौण वादन करके दुनिया की नजरों में आए थे।
उनके निधन से भारत की इस जनजातीय कला के जादूगर की कमी खलती रहेगी। भरमौर क्षेत्र के विधायक डॉ जनक राज ने पदम श्री मुसाफिर राम भारद्वाज के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए इसे देश व गद्दी जनजाति के लिए भारी क्षति बताया है। उन्होंने कहा कि सामान्य व्यक्ति से पदम श्री होने के लिए लगातार कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।
पौण वादन कला को उनके वंशज व समाज के कुछ अन्य लोग भी आगे बढ़ा रहे हैं परंतु इस कला को फिर कोई पदम श्री तक ले जाएगा इसके लिए शायद अब लम्बा इन्तजार करना पड़ेगा।