घोघड़, चम्बा, 25 जनवरी : 48 वर्ष पूर्व रिटायर हो चुके इस फौजी के जीवन में सेना के नियम अभी भी घुले हुए हैं। गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस तिरंगे को सलामी देना नहीं भूलता कर्मचंद। भरमौर मुख्यालय में होने वाले ऐसे कार्यक्रमों को दर्शक दीर्घा में बैठकर देखकर खुश हो जाता है।
भारत कल 26 जनवरी 2025 को गणतंत्र दिवस मना रहा है। स्वतंत्र भारत की संप्रभुता बनाए रखने व इस देश की सीमाओं की सुरक्षा करने वाले सैनिकों को इस दिन सम्मानित किया जाता है। देश की राजधानी दिल्ली में भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना के जवान और अधिकारी भव्य परेड करते हैं। अत्याधुनिक हथियारों, टैंकों और विमानों का प्रदर्शन किया जाता है।
राष्ट्रपति बच्चों, सैनिकों और नागरिकों को उनकी बहादुरी के लिए वीरता पुरस्कार प्रदान करते हैं।
26 जनवरी पर सैनिकों के शौर्य व योगदान की बात न हो तो यह उनके मनोबल को कम करता है। जनजातीय क्षेत्र भरमौर में कल गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है परंतु देश के लिए दो युद्ध लड़ने वाले व तीन माह चीन में युद्ध बंदी का दर्द झेलने वाले डोगरा रैजिमेंट के सैनिक कर्म चंद को सम्मानित करना तो दूर कोई अधिकारी उन्हें पहचानता तक नहीं है ।
जनजातीय क्षेत्र भरमौर के मलकौता गांव के कर्म चंद पुत्र दिवान चंद 06 अगस्त 1962 को भारतीय सेना की डोगरा रेजिमेंट में भर्ती हुए थे और अप्रैल 1977 में सेवानिवृत हुए। कर्म चंद अपने सेना में भर्ती होने के दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि वे पढ़े लिखे नहीं थे परंतु सेना में भर्ती होना चाहते थे। जहां भर्ती होने के लिए जाते वहां पहले दसवीं फिर आठवीं और उसके बाद पांचवी कक्षा पास युवकों को भर्ती किया जाता जबकि उन्हें वापिस भेज दिया जाता था। 1962 में चीन के साथ भारत के सम्बंध बिगड़े हुए थे । यह युद्ध सीमा विवाद (अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश) को लेकर हुआ। इसलिए देश में लगातार सेना भर्तियां हो रही थीं।
कांगड़ा जिला के शाहपुर नामक स्थान पर भर्ती आयोजित होने की सूचना मिली तो वे अपने अपने साथियों के साथ भर्ती होने के लिए निकल पड़े। और उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब कहा गया कि शारीरिक दक्षता सिद्ध करने वाले अनपढ़ युवकों को भी सेना में शामिल किया जाएगा। इस प्रकार वे 06 अगस्त 1962 को भर्ती हो गए । कर्म चंद इस दिन को अपने जीवन का महत्वपूर्ण दिन भी मानते हैं क्योंकि यह उनका जन्मदिवस भी होता है।
कर्म चंद बताते हैं कि ट्रेनिंग के बाद उन्हें असम राज्य के डिब्रुगढ़ ले जाया गया जहां चीनी सेनाएं भारतीय सेना के सामने थीं। भारतीय सेनाएं लगातार चीनी सेना का जबाव दे रही थी परंतु उनकी संख्या बहुत अधिक थी और हमारे पास गोला बारूद समाप्त हो गया। उस समय हमारी रेजिमेंट में करीब 80 जवान थे जिन्हें चीनी सैनिकों ने घेर लिया। निहत्थे सैनिकों के पास कोई उत्तर नहीं था।
कर्मचंद बताते है कि चीनी सैनिक हमें बंदूकों के घेरे में सड़क तक ले गए जहां से आगे बख्तरबंद वाहन में अज्ञात स्थान पर ले गए । चीन में युद्धबंदी के रूप में उन्होंने 90 दिन गुजारे थे इस दौरान चीनी सैनिकों की निगरानी में ही भोजन,स्नान,शौच व शयन इत्यादि होता था। हमें प्रतिदिन तीन समय भोजन दिया जाता था व 500 मीटर में फैले शिविर से बाहर नहीं जाने दिया जाता था। चीनी सैनिक आवश्यक सूचनाएं दुभाषिए के माध्यम से देते थे। अढ़ाई माह बाद चीनी सैनिकों ने उन्हें बताया गया कि वे आजाद होने वाले हैं तो वहां मौजूद भारतीय सैनिकों के मन में भय उत्पन्न हुआ कि चीनी सेना उन्हें मारने वाली है। वैसे तो वे चीनी सेना द्वारा गिरफ्तार किए जाने के दौरान ही स्वयं को मरा हुआ ही मान रहे थे क्योंकि उन्हें नहीं लगता था कि उन्हें जिंदा वापिस लौटने का अवसर मिलेगा। परंतु जब चीनी सैनिकों से लगातार तीन-चार दिन तक इस बारे में इशारों से बात की जाने लगी तो सब सैनिकों में खुशी का ठिकाना न रहा।
कर्मचंद बताते हैं कि उन्हें याद नहीं है कि वे किस दिन वहां से लौटे थे।
अपने 15 वर्ष के सैनिक सेवाकाल में उन्होंने दो बार पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में में भाग लिया है। कर्मचंद को भारत सरकार सात मैडल दिए हैं जिनमें पश्चिम स्टार व समर सेवा स्टार,रक्षा सेवा मैडल,नागा हिल्स,संग्राम मैडल,25 स्वतंत्रता वर्षगांठ मैडल व दीर्घ सेवा मैडल शामिल हैं। देश के लिए जान की बाजी लगा देने वाले ऐसे भूतपूर्व सैनिक अब कुछेक ही बचे होंगे, उन्हें किसी से सम्मान की भी चाह नहीं परंतु उनके द्वारा राष्ट्र के लिए दिए योगदान के कारण ही सरकार, प्रशासन व नागरिक चैन की नींद सो पाते हैं। शायद सरकार व प्रशासन को क्या आवश्यकता है यह जानने में कि वे किस हाल में हैं।