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घोघड़, चम्बा 16 सितम्बर : किसी भी प्रकार की दुर्घटना के तुरंत बाद घायल को जल्द उपचार देने के प्रयास में उसे गलत तरीके से उठाने के कारण वह मृत्यु का शिकार हो सकता है। रावमापा भरमौैर में विद्यार्थियों को सड़क सुरक्षा व ह्रदयाघात के विषय में जानकारी देते हुए उपमंडलीय आयुर्वैदिक संस्थान भरमौर में सेवाएं प्रदान कर रहे जनरल सर्जन अदित्य शर्मा ने कहा कि दुर्घटना के तुरंत बाद राहत व बचाव कार्य आरम्ब हो जाता है। उस समय जो भी व्यक्ति वहां मौजूद होते हैं वे जल्द अस्पताल पहुंचाने के लिए घायलों को जैसे तैसे उठाकर वाहनों में या अन्य तरीके से अस्पताल पहुंचाने का प्रयास करते हैं । इस प्रक्रिया में अनजाने में कई बार भारी भूल हो जाती है जिससे घायल की जान भी चली जाती है। उन्होंने बताया कि घायल को उठाते समय उसके मेरूदंड व गर्दन को सीधा रखें जिसके लिए उन्हें स्टेचर, फट्टे या अन्य किसी प्रकार के समतल वस्तु के ऊपर लेटाएं। गम्भीर रूप से घायल को किसी भी प्रकार का पेय न दें, यह उनके फेफड़ों में जा सकता है।

उन्होंने कहा कि ह्रदयाघात आज किसी भी आयुवर्ग में हो सकता है। इसके लिए हमारे भेजन में में फास्ट फूड, पैक्ड फूड के उपभोग व संतुलित भोजन का अभाव एक मुख्य कारण है। इसके अलावा मानसिक तनाव, अनिद्रा, व्यायाम न करना जैसे कई कारण ह्रदयाघात की पृष्ठभूमि तैयार करते हैं। उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति के सीने में तेज दर्द के साथ पसीना आना, सीने या हाथ में दबाव, खिंचाव, दर्द या सनसनाहट महसूस होना जो की सीने और हाथ से होते हुए गर्दन और पीठ तक पहुंच जाती है। अचानक चक्कर आना, सांस लेने में तकलीफ होना,थकावट और अचानक घबराहट होना ह्रदयाघात के लक्षण हैं।

ऐसी स्थिति में जितनी जल्दी हो सके मरीज को चिकित्सक के पास पहुंचाएं। डॉ अदित्या ने अचेत स्थिति में पहुंच रहे मरीजों को सीपीआर (कार्डियो-पल्मोनरी रिससिटेशन) देने की विधि बताते हुए कहा कि सीपीआर में छाती को हथेली से इस प्रकार दबाना और छोड़ना होता कि मरीज के फेफड़े वातावरण से हवा खींच सकें। सीपीआर यदि कार्डियक अरेस्ट के पहले छह मिनट के भीतर किया जाता है, तो पीड़ित को चिकित्सा उपचार मिलने तक जीवित रखा जा सकता है। सीपीआर तब तक जारी रखा जाना चाहिए जब तक कि हृदय की लय सामान्य न हो जाए या व्यक्ति को मृत घोषित न कर दिया जाए।

इस दौरान मुंह से भी स्वास प्रदान करने का प्रायस किया जा सकता है। डॉ अदित्या शर्मा ने कहा कि उपर्युक्त दोनों परिस्थितियों में सबसे महत्वपूर्ण घायल व मरीज को तुरंत चिकित्सक तक पहुंचाना व उसे उठाने की प्रक्रिया सुरक्षित होनी चाहिए । उन्होंने कहा कि ऐसी परिस्थिति सामने आने पर वे किसी प्रकार का संकोच किए बिना घायल व मरीज की मदद करें इससे किसी की भी जान बचाई जा सकती है।


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