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घोघड़, नई दिल्ली, 22 अप्रैल : भारतीय संविधान के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम ‘कर्तव्यम’ में देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संवैधानिक मूल्यों और नागरिकों की भूमिका पर महत्वपूर्ण विचार रखे। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि संवैधानिक पद केवल औपचारिक या सजावटी नहीं होते, बल्कि लोकतंत्र में हर नागरिक सर्वोच्च होता है।

उपराष्ट्रपति ने स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान में संसद से ऊपर किसी अन्य प्राधिकरण की कल्पना नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की आत्मा प्रत्येक नागरिक में बसती है और नागरिकों के जागरूक योगदान से ही लोकतंत्र मजबूत होता है।

धनखड़ ने कहा, “हम, भारत के लोग, संविधान के असली स्वामी हैं। संसद जनता के माध्यम से अपनी शक्ति प्राप्त करती है।” उन्होंने यह भी स्मरण कराया कि लोकतंत्र में संवाद की गुणवत्ता का विशेष महत्व है और चेताया कि धनबल, बाहुबल या विदेशी हितों से नियंत्रित संवाद लोकतंत्र के लिए घातक हो सकता है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “लोकतंत्र अभिव्यक्ति और संवाद से ही पनपता है। यदि सही समय पर सही बात कहने में हिचकिचाएंगे तो स्वयं को और सकारात्मक शक्तियों को भी कमजोर करेंगे।”

राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि युवाओं को पक्षपात से ऊपर उठकर विचारशील विमर्श करना चाहिए और राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज भारत एक वैश्विक शक्ति बनने की दिशा में अग्रसर है और इस महत्वपूर्ण मोड़ पर युवाओं की भूमिका निर्णायक होगी।

इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश सिंह, डीन महाविद्यालय प्रो. बलराम पाणि, दक्षिण दिल्ली परिसर के निदेशक  प्रकाश सिंह सहित कई गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित रहे।
‘कर्तव्यम’ कार्यक्रम ने छात्रों और प्रतिभागियों को लोकतंत्र की गहरी समझ और जिम्मेदार नागरिकता की दिशा में प्रेरित किया।


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