घोघड़, चम्बा, 13 मार्च : हिप्र में इस वर्ष पहली कक्षा से अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाने की पहल की गई है। लेकिन यह खबर प्रथम व द्वित्तीय कक्षाओं से सम्बंधित नहीं है। हम आपको जनजातीय क्षेत्र भरमौर के उन विद्यालयों में आरम्भ की गई अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई की पहल के बारे में अवगत करवा रहे हैं जहां कक्षा छः से ही अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाने की पहल हुई है। राजकीय माध्यमिक विद्यालय पंजसेई, राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला व वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला भरमौर में अध्यापकों ने छठी कक्षा से विद्यार्थियों को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाना आरम्भ कर दिया है। इन सरकारी स्कूल में विषयों को अंग्रेजी भाषा में पढ़ाया व समझाया जा रहा है।
पिछले सात वर्षों से हिन्दी माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर रहे विद्यार्थियों को भाषा बदलने से कोई असहजता होती नहीं दिख रही। विद्यार्थियों को जहां समझ नहीं आ रहा अध्यापक वहां हिन्दी भाषा में सरलार्थ करके समझा रहे हैं। गौरतलब है कि इन स्कूलों में छठी कक्षा से हिन्दी मीडियम में पढ़ाने की पहल की गई है। संस्थानों की स्कूल प्रबंधन समितियों ने शीतकालीन अवकाश से पूर्व ही प्रस्ताव पारित कर नये शैक्षणिक सत्र से अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्रदान करने का निर्णय लिया था।
अभिभावकों का मानना है कि उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद सरकारी, गैर सरकारी कार्य या प्रतिस्पर्धी परीक्षाएं, हर जगह अंग्रेजी भाषा में ही कार्य होते हैं। हिन्दी माध्यम से शिक्षित कई लोगों को इन कार्यों को करवाने में असहजता होती है क्योंकि वे वहां के प्रपत्रों को वे पूरी तरह समझ नहीं पाते। ऐसें में अगर स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई हो तो भविष्य में उन्हें इन सामान्य कार्यों को निपटाने में दिक्कतें नहीं आएंगी।अभिभावकों का कहना है कि प्रदेश सरकार ने पहली कक्षा से अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्रदान करना आरम्भ कर दिया है यह अच्छा निर्णय है परंतु इस समय स्कूलों में अन्य कक्षाओं में शिक्षा ग्रहण कर रहे विद्यार्थियों को भी अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि उन्हें यह मलाल न रहे कि उनके शैक्षणिक काल में अंग्रेजी माध्यम से नहीं पढ़ाया गया।
इस मामले में अध्यापकों का मानना है कि बच्चों को किसी भाषा में पढ़ाया जाए वे जल्दी सीख लेते हैं। राजकीय माध्यमिक पाठशाला पंजसेई के मुख्याध्यापक पंजाब सिंह बताते हैं कि बच्चों को अंग्रेजी माध्यम अपनाने में कोई झिझक नहीं है । विद्यार्थी बिना किसी अतिरिक्त दबाव के विषय को सीख रहे हैं। उन्होंने कहा कि ग्रामीण भागों में अंग्रेजी भाषा को कठिन बताकर हौव्वा बनाया गया है जबकि कई बच्चे इसी दौरान संस्कृत, उर्दू, पंजाबी मराठी आदि भाषाएं सीख लेते हैं।