घोघड़, चम्बा /16 जून 2025 : मानव कितना स्वार्थी है इसका उदाहरण आज फिर देखने को मिल गया देवी भरमाणी की पूजा कर पुण्य कमाने सैकड़ों लोग आज भरमौर से वाया घराड़ू भरमाणी मंदिर की निकलते रहे परंतु सड़क के किनारे जीवन मृत्यु के बीच झूल रहे बछड़ों की मदद के लिए कोई नहीं रुका। सड़क किनारे घायल पड़े इन बछड़ों को कुत्ते भी नोच रहे थे हालांकि कुछ टैक्सी चालकों ने इन कुत्तों को वहां से भगाकर इन बछड़ों की पीड़ा को कुछ देर के लिए कम अवश्य कर दिया था।
हुआ यूं कि घोघड़ न्यूज की टीम स्थानीय समाजसेवी गुलशन नंदा के साथ क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने के मुद्दे पर चर्चा करते हुए आज 16 जून 2025 को भरमाणी मंदिर से भरमौर मुख्यालय लौट रही थी । वन विभाग के विश्रामगृह घराड़ू के पास एक बछड़ा सड़क किनारे बुरी तरह घायल होकर गिरा हुआ था। हमने गाड़ी से उतर बछड़े के घावों की स्थिति व उसके गिरने की सम्भावना का आकलन किया। गुलशन नंदा ने कहा कि हो सकता है बछड़े पर भालू ने हमला किया हो क्योंकि उसकी गर्दन पर गहरे जख्म थे और बछड़ा केवल साँसें ही ले पा रहा था।
सायं के पाँच बज चुके थे बछड़े की गम्भीर दशा को देखते हुए हमने सरकार की पशु धन संजीवनी 1962 पर फोन कॉल करके उनसे इस संदर्भ में सहायता मांगी तो कॉल सेंटर से जबाव मिला कि बछड़े की जिम्मेदारी लोगे तभी हम चिकित्सक भेजेंगे। चूंकि बछड़ा बेसहारा था तो ऐसे में 1962 कॉल सेंटर ने सेवा देने से मन्हा कर दिया।
1962 से सहायता न मिलती देखकर गुलशन नंदा ने पशुपालन विभाग में तैनात परिचित फार्मासिस्ट सिकंदर से सहायता मांगी तो उन्होंने बिना किसी लाग लपेट के दवाइयां लेकर पहुंचने का भरोसा दिया। इस दौरान हमें लगा कि बछड़े की गम्भीर दशा को देखते हुए इसे पशु चिकित्सालय ले जाना चाहिए इसलिए हमने 1962 पशु चिकित्सा सेवा केंद्र को दुबारा कॉल किया तो वहां से उत्तर मिला कि पांच बजे के बाद 1962 मोबाइल पशु चिकित्सा सेवा नहीं दी जाती है। सेवा केंद्र कर्मचारी से हमने आपात स्थिति को जताते हुए कहा तो उन्होंने पशु चिकित्सक का नम्बर जारी करते हुए कहा कि आपको उक्त नम्बर से सहायता के संदर्भ में कॉल आएगी, जोकि नहीं आई।
इस दौरान भरमौर से भरमाणी मंदिर की ओर जा रहे एक टैक्सी चालक ने बताया कि दो मोड़ नीचे सड़क के किनारे एक और बछड़ा गिरा है। अब हमने सहायक निदेशक भेड़ विकास राकेश भंगालिया को मामले से अवगत कराते हुए सहायता मांगी तो उन्होंने कहा कि वे एक चिकित्सक को सड़क के सुरक्षित भाग तक भेज रहे रहें हैं। चिकित्सक को घटना स्थल तक पहुंचाने के लिए हम कार लेकर गरीमा-भरमाणी चौक पर आ गए । जहां पशुपालन विभाग में तैनात फार्मासिस्ट सिकंदर हमारी कॉल के बीस मिनट में पहुंच गया। जो आवश्यक दवाइयां अस्पताल में नहीं थीं उन्हें वे दुकान से खरीद लाए थे। फार्मासिस्ट सिकंदर ने दोनों बछड़ों को इंजेक्शन लगाकर कुछ दवाई पिलाई व गुलशन नन्दा के साथ मिलकर उनके घावों पर दवाई लगा दी।
इस पूरी प्रक्रिया को निपटाने के बाद हमने फार्मासिस्ट सिकंदर से इन बछड़ों के गिरने व घायल होने के कारण के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि दोनों बछड़े छः से सात माह की आयु के हैं इन बछड़ों को टैग भी नहीं लगवाया गया है इसलिए इनके मालिकों की पहचान करना मुश्किल है। सिकंदर ने कहा कि हो सकता है कि बेसहारा छोड़े इन बछड़ों पर आवारा कुत्तों ने हमला किया हो और अपने बचाव के लिए भागते हुए पहाड़ी से गिर गए हों ।
गुलशन नंदा बताते हैं कि हमारा समाज दोहरा चरित्र दिखा रहा है, सार्वजनिक रूप से लोग पशु प्रेमी होने का दिखावा करते हैं जबकि पशु पालने में समस्या आती है तो वे उनके टैग उतार कर उन्हें बेसहारा कर देते हैं। सड़क व जंगलों में घूमते गौवंश इसी का उदाहरण है। उन्होंने कहा कि जिन गौवंश को लोग बेसहारा कर रहे हैं उनमें से कमजोर को पशुओं को आवारा कुत्ते अपना शिकार बना रहे हैं। दर्दनाक मौत का सामना करते इन निरीह प्राणियों को देखना बहुत दुखद अनुभव है। उन्होंने कहा कि पशु पालन विभाग की 1962 कॉल सेवा किसी काम की नहीं है जब पशुओं को आपात स्थिति में सहायता चाहिए होती है तो कभी एबुलेंस योग्य सड़क न होने का हवाला दिया जाता है तो तो कभी समय पूरा होने का। उन्होंने तंज करते हुए कहा कि अब पशुओं को चाहिए कि वे बीमार या घायल होने के लिए पक्की सड़क बनवा लें व सुबह 9 से सायं पांच बजे का समय निर्धारित कर लें क्योंकि इसके बाद 1962 कॉल वाली पशु चिकित्सा सेवा वाली सहायता नहीं मिलती है।
उन्होंने सरकार व पशुपालन विभाग से अपील की है कि इस समस्या के स्थाई समाधान के लिए तुरंत व उचित कदम उठाएं। उन्होंने लोगों से भी अपील की कि अपने पशुओं को बेसहारा ने करें क्योंकि आवारा कुत्ते व अन्य जंगली जानवर इन्हें बुरी तरह मार रहे हैं। मृत्यु सत्य है परंतु वह हमारी लापरवाही के कारण दर्दनाक नहीं होनी चाहिए।