घोघड़, चम्बा, 17 अक्तूबर : भरमौर मुख्यालय में कचरा प्रबंधन को लेकर प्रशासन की लापरवाही अब गंभीर मुद्दा बनती जा रही है। जनता के स्वास्थ्य, पर्यावरण सुरक्षा और सरकारी धन के सदुपयोग जैसे बुनियादी प्रश्नों पर प्रशासन मौन है। एक ओर भरमौर नगर के सीमित क्षेत्र में ही सफाई कार्य किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इस सफाई से निकला कचरा सीधे पट्टी नाला में फेंका जा रहा है — जबकि हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय पहले ही नालों और जलस्रोतों में कचरा डालने पर सख्त रोक लगाने के आदेश दे चुका है। विडम्बना देखो कि तमाम नियम कानूनों को धत्ता बताते हुए अनियमितताएं हो रही हैं और लोग सहन करने के अलावा कुछ भी नहीं कर पा रहे।
शठली नाला में बना शेड चार माह में ध्वस्त
प्रशासन ने भरमौर-हड़सर सड़क मार्ग के किनारे शठली नाला नामक स्थान पर करीब ₹20 लाख की लागत से एक बड़ा कचरा शेड बनाया था, ताकि कचरे को व्यवस्थित रूप से एकत्र किया जा सके। परंतु हैरानी की बात यह है कि यह शेड ऐसे स्थान पर बनाया गया जहां लगातार भूस्खलन होता है। निर्माण के मात्र चार माह बाद ही यह शेड पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुका है।
स्थानीय लोग पूछ रहे हैं कि जब क्षेत्र के भू-वैज्ञानिक और सम्बंधित विभाग के इंजीनियर व अधिकारी इस क्षेत्र की भूस्खलन प्रवृत्ति से परिचित थे, तो आखिर इस स्थान का चयन किस तकनीकी रिपोर्ट के आधार पर किया गया? क्या यह जानबूझकर लापरवाही थी या किसी को लाभ पहुंचाने की योजना ?
चट्टाने गिरने से जहां यह शेड क्षतिग्रस्त हुआ है वहीं इसका रास्ता भी चट्टाने दरकने के कारण अवरुद्ध हो चुका है।

मणिमहेश मार्ग पर कचरे के ढेर — गोठड़ू नाला के किनारे खुले में पड़ा मलबा
वर्ष 2024 में मणिमहेश यात्रा के दौरान एकत्रित कचरे को प्रशासन ने एनएच-154ए पर स्थित गोठड़ू नाला के किनारे बनाए गए अस्थायी शेड में एकत्रित किया था। लेकिन कई क्विंटल कचरा सड़क किनारे ही खुला पड़ा है, जो एक वर्ष से वहीं सड़ रहा है। इससे न केवल दुर्गंध फैल रही है बल्कि वन्यजीवों और राहगीरों के लिए भी खतरा उत्पन्न हो गया है।
सूत्र बताते हैं कि इस अस्थायी शेड पर भी लाखों रुपए खर्च किए गए, लेकिन उसका कोई स्थायी उपयोग या वैज्ञानिक निपटान व्यवस्था आज तक नहीं बनी। न ही वहां कोई सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम (SWM) स्थापित किया गया है, जो स्वच्छ भारत मिशन के दिशा-निर्देशों का गंभीर उल्लंघन है।


पट्टी नाला में लाखों की दीवार ढही, जिम्मेदारों पर कार्रवाई नहीं
लघुसचिवालय से मात्र सौ मीटर की दूरी पर भरमौर प्रशासन ने कुछ वर्ष पूर्व पट्टी नाला में कचरा एकत्रित करने के उद्देश्य से लगभग ₹25 लाख की लागत से एक दीवार का निर्माण करवाया था। लेकिन घटिया निर्माण और तकनीकी मानकों की अनदेखी के कारण यह दीवार अब ढह चुकी है। हैरानी की बात यह है कि इस निर्माण की जांच तक नहीं करवाई गई और न ही संबंधित ठेकेदार या अभियंता के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह दीवार जनता के पैसे की खुली बर्बादी है। न्यायालय द्वारा दिए गए स्पष्ट निर्देशों के बावजूद इस नाले में प्रशासन द्वारा कचरा डालना जारी है, जोकि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 का उल्लंघन है।


कानूनी और पर्यावरणीय उल्लंघन स्पष्ट
पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, भरमौर में हो रहे ये कार्य कई कानूनों का उल्लंघन करते हैं —
-
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
-
जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974
-
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट नियम, 2016
इन कानूनों के तहत स्थानीय प्रशासन को वैज्ञानिक ढंग से कचरा एकत्र करने, पृथक्करण करने और निपटाने की जिम्मेदारी दी गई है। न्यायालयों ने भी बार-बार यह स्पष्ट किया है कि नालों या जल स्रोतों में कचरा डालना न केवल अवैध है बल्कि जनहित याचिका के तहत दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है।
स्थानीय समाजसेवी एवं जम ट्रेनर मंजीत ठाकुर मंजू का कहना है कि भरमौर प्रशासन ने विकास कार्यों में भारी लापरवाही बरती है। घटिया निर्माण और गलत योजना से लाखों रुपये पानी में बहा दिए गए, लेकिन किसी पर जिम्मेदारी तय नहीं की गई। उन्होंने कहा कि अब पानी सिर के ऊपर से हो गया है इस पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
सरकार और प्रशासन की चुप्पी सवालों के घेरे में
प्रशासन की लगातार चुप्पी और कार्रवाई न होने से यह संदेह पैदा होता है कि कहीं भ्रष्टाचार और मिलीभगत के कारण ही ये मामले दबा तो नहीं दिए जा रहे। मंजीत ठाकुर का कहना है कि यदि शीघ्र जांच नहीं हुई, तो वे इस विषय को उच्च न्यायालय के समक्ष ले जाएंगे।
