घोघड़, नई दिल्ली, 4 जुलाई 2025 : अब हवा में छिपे खतरों का पता लगाना और भी आसान हो गया है। वैज्ञानिकों ने एक नई पोर्टेबल और सस्ती डिवाइस विकसित की है, जो बेहद कम मात्रा में मौजूद सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) गैस का पता लगाकर स्वास्थ्य और पर्यावरण सुरक्षा को एक नया साधन प्रदान करती है। यह गैस वायु प्रदूषण के प्रमुख कारकों में शामिल है और फेफड़ों की बीमारियों, अस्थमा और दीर्घकालिक क्षति का कारण बन सकती है।
इस अत्याधुनिक सेंसर को बेंगलुरु स्थित सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज (CeNS) के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है, जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अधीन एक स्वायत्त संस्था है। यह डिवाइस निकेल ऑक्साइड (NiO) और नियोडिमियम निकेल (NdNiO₃) नामक दो धातु ऑक्साइड्स को मिलाकर बनाई गई है। जहां निकेल ऑक्साइड गैस को पहचानने का कार्य करता है, वहीं नियोडिमियम निकेल सिग्नल को ट्रांसमिट करता है।
प्रमुख विशेषताएं:
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320 पीपीबी तक की कम सांद्रता में SO₂ का पता लगाने में सक्षम, जो कई मौजूदा सेंसरों से अधिक संवेदनशील है।
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सेंसर में तीन स्तर की चेतावनी प्रणाली है –
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हरा रंग: सुरक्षित स्तर
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पीला रंग: चेतावनी
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लाल रंग: खतरे की स्थिति
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इसका कॉम्पैक्ट और हल्का डिजाइन इसे शहरों, उद्योगों और बंद स्थानों में उपयोग के लिए उपयुक्त बनाता है।
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इसे बिना किसी वैज्ञानिक प्रशिक्षण के भी आसानी से उपयोग और समझा जा सकता है।
इस तकनीक का नेतृत्व डॉ. एस. अंगप्पन ने किया है, जबकि डिज़ाइनिंग में श्री विष्णु जी नाथ का योगदान रहा। टीम में डॉ. शालिनी तोमर, श्री निखिल एन. राव, डॉ. मुहम्मद सफीर, डॉ. नीना एस. जॉन, डॉ. सतदीप भट्टाचार्य और प्रो. सेउंग-चेओल ली शामिल हैं।
इस शोध को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली है और यह प्रतिष्ठित “स्मॉल” नामक वैज्ञानिक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
यह सेंसर तकनीक एक सुलभ, संवेदनशील और उपयोगकर्ता अनुकूल समाधान के रूप में उभर रही है, जो न केवल प्रदूषण की निगरानी में सहायक है बल्कि जनस्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी एक ठोस पहल है।
