घोघड़,नई दिल्ली 20 दिसम्बर : केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान तथा प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा है कि वर्तमान में उपलब्ध वजन घटाने अथवा मोटापा कम करने वाली दवाओं का उपयोग अत्यंत विवेकपूर्ण और सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि मोटापा केवल जीवनशैली या सौंदर्य से जुड़ी समस्या नहीं, बल्कि एक जटिल, दीर्घकालिक और बार-बार होने वाला विकार है।
डॉ. जितेंद्र सिंह, जो स्वयं एक प्रख्यात मधुमेह विशेषज्ञ एवं चिकित्सा के प्रोफेसर हैं, दो दिवसीय एशिया ओशिनिया कॉनफ्रेंस ऑन ऑबेसिटी (एओसीओ) के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर डॉ. क्यौंग कोन किम, डॉ. वोल्कान युमुक, डॉ. महेंद्र नरवारिया, डॉ. बी.एम. मक्कर, डॉ. बंशी साबू सहित देश-विदेश के कई वरिष्ठ विशेषज्ञ उपस्थित रहे।
मंत्री ने कहा कि भारत में मोटापा एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती के रूप में उभर रहा है और इससे निपटने के लिए केवल चिकित्सकीय नहीं, बल्कि समग्र सामाजिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जैसे अर्थशास्त्र को केवल अर्थशास्त्रियों तक सीमित नहीं रखा जा सकता, उसी प्रकार मोटापे जैसी समस्या को केवल डॉक्टरों या महामारी विशेषज्ञों पर नहीं छोड़ा जा सकता, क्योंकि इसकी जड़ें सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय कारकों से गहराई से जुड़ी हैं।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि भारत में गैर-संचारी रोगों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय है, जिनका लगभग 63 प्रतिशत योगदान कुल मृत्यु दर में है और इनमें से अधिकांश किसी न किसी रूप में मोटापे से जुड़े हैं। टाइप-2 मधुमेह, हृदय रोग और कुछ प्रकार के कैंसर का सीधा संबंध मोटापे से है। उन्होंने विशेष रूप से भारतीयों में पाए जाने वाले केंद्रीय (आंतरिक) मोटापे को गंभीर जोखिम कारक बताया, जो शरीर के कुल वजन से अलग भी स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व का उल्लेख करते हुए मंत्री ने कहा कि किसी प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रीय मंचों से बार-बार मोटापे और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों पर चर्चा करना अपने आप में अभूतपूर्व है। उन्होंने कहा कि खान-पान और दिनचर्या में छोटे लेकिन निरंतर बदलावों पर प्रधानमंत्री का जोर यह दर्शाता है कि मोटापा अब एक राष्ट्रीय प्राथमिकता बन चुका है। यह दृष्टिकोण फिट इंडिया, खेलो इंडिया और निवारक स्वास्थ्य देखभाल की व्यापक नीति के अनुरूप है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि वर्ष 2014 के बाद से स्वास्थ्य नीति-निर्माण के केंद्र में आया है और सरकार की प्राथमिकता रोकथाम, किफायती इलाज और समय पर जांच पर है। उन्होंने आयुष्मान भारत, व्यापक स्वास्थ्य जांच कार्यक्रमों और स्वदेशी टीकों के विकास को इस दिशा में उठाए गए महत्वपूर्ण कदम बताया। साथ ही आयुष मंत्रालय के माध्यम से पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को मुख्यधारा में शामिल करने पर भी बल दिया।
मंत्री ने मोटापे के नाम पर बढ़ते व्यवसायीकरण और भ्रामक प्रचार के प्रति आगाह करते हुए कहा कि अवैज्ञानिक दावे और तथाकथित त्वरित समाधान लोगों को गुमराह करते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि केवल औपचारिक अनुमोदन ही दीर्घकालिक स्वास्थ्य सुरक्षा की गारंटी नहीं होते और पूर्व में रिफाइंड तेलों के अंधाधुंध उपयोग से सामने आए दुष्परिणामों का उदाहरण भी दिया। उन्होंने मिथकों और गलत सूचनाओं के विरुद्ध जिम्मेदार मीडिया एवं डिजिटल प्लेटफॉर्म के उपयोग पर जोर दिया।
युवाओं तक प्रभावी संदेश पहुंचाने की आवश्यकता पर बल देते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि जन-जागरूकता को केवल चिकित्सा सम्मेलनों तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि विकसित भारत-2047 के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए देश की युवा पीढ़ी के स्वास्थ्य और ऊर्जा की रक्षा अत्यंत आवश्यक है।
इस अवसर पर मंत्री ने एआईएएआरओ मोटापा रजिस्ट्री का शुभारंभ भी किया, जिसका उद्देश्य व्यवस्थित डेटा संग्रह, प्रमाण-आधारित अनुसंधान और दीर्घकालिक नीतिगत सहयोग के माध्यम से भारत में मोटापा अनुसंधान को सशक्त बनाना है।
उल्लेखनीय है कि एशिया ओशिनिया कॉनफ्रेंस ऑन ऑबेसिटी (एओसीओ), एशिया और ओशिनिया क्षेत्र में मोटापा संबंधी संगठनों की शीर्ष संस्था एशिया ओशिनिया एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ ऑबेसिटी (एओएएसओ) का प्रमुख सम्मेलन है। भारत में इसका आयोजन ऑल इंडिया एसोसिएशन फॉर एडवांसिंग रिसर्च इन ऑबेसिटी (एआईएएआरओ) द्वारा एओएएसओ के सहयोग से किया जा रहा है। सम्मेलन का उद्देश्य वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करना, अनुसंधान सहयोग बढ़ाना और मोटापे के प्रमाण-आधारित प्रबंधन को मजबूत करना है।
सम्मेलन के माध्यम से यह संदेश दिया गया कि मोटापा केवल एक चिकित्सीय नहीं, बल्कि एक सामाजिक चुनौती है, जिसका समाधान शॉर्टकट से नहीं, बल्कि समन्वित प्रयासों, निरंतर जागरूकता और जनभागीदारी से ही संभव है।

