घोघड़, चम्बा, 11 अप्रैल : भरमौर विकास खंड की तीन हितधारक ग्राम पंचायतों ने प्रस्तावित टीसीपी के विरोध में प्रस्ताव पारित कर इसकी विकास योजना के मसौदे पर अपनी आपत्तियां दर्ज करवाई हैं। हिप्र सरकार नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग द्वारा जनजातीय मुख्यालय भरमौर व उसके आसपास के क्षेत्र की पंचायतों को विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण के अंतर्गत लाकर विकास कार्य करवाने का प्रयास कर रही है। जिसके तहत नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग(टाउन एंड कंट्री प्लानिंग) ने निर्धारित क्षेत्र में इस अधिनियम को लागू करने के लिए विकास योजना का मसौदा तैयार किया है। इस मसौदे को लागू करने के लिए हितधारक क्षेत्र के लोगों से इस पर आपत्तियां व सुझाव आमंत्रित की गई थीं। ऑफ लाईन प्रक्रिया अनुसार आपत्ति व सुझाव दर्ज करवाने की आज 11 अप्रैल 2025 अंतिम तिथि थी जबकि उपायुक्त चम्बा को ईमेल माध्यम से यह आपत्तियां व सुझाव कल 12 अप्रैल तक भेजे जा सकते हैं।
टीसीपी लागू किए जाने के मुद्दे पर आपत्ति व सुझाव दर्ज करवाने के अंतिम दिन आज सामान्य लोगों के अलावा ग्राम पंचायत भरमौर, सचूईं व घरेड़ ने भी इसके विरोध में प्रस्ताव पारित कर अपनी आपत्तियां दर्ज करवाई हैं। इन पंचायतों ने लोगों के हितों को देखते हुए इस जनजातीय क्षेत्र भरमौर में टीसीपी के तहत साडा को लागू करने का विरोध करते हुए कहा है कि इस क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति गद्दी समुदाय के लोग अपनी परम्पराओं व संस्कृति को अपनाए हुए रह रहे हैं। जिनकी भवन निर्माण शैली पारम्परिक काष्ठकुणी है जिसका कार्य सामुदायिक सहयोग से होता है। भूमि के बटवारे के लिए राजस्व विभाग का बहुत कम अवसर पर सहयोग लिया जाता है। समाज की समस्याओं को ग्राम स्तर पर सुलाझाने की परम्परा है। यहां के निर्माण कार्य व धार्मिक रीति रिवाज इस प्रकार से आपस में जुड़े हैं कि घर में मंदिर, पशुओं के लिए स्थान इत्यादि सब एक शैली के अनुसार किया जाता है। ग्राम पंचायतों का कहना है कि सरकार को विकास के नाम पर इनकी जीवन शैली में बेजा दखल नहीं देना चाहिए ।
इस क्षेत्र में गरीब परिवारों की संख्या बहुत अधिक है जोकि टीसीपी के नियमों की पालना न कर पाने की स्थिति में अपना आशियाना तक नहीं बना पाएंगे।
भरमौर के समाज सेवी गुलशन नंदा बताते हैं कि जनजातीय समाज की जीवनशैली मुख्यतः पारंपरिक है—पत्थर, लकड़ी और मिट्टी से बने घर, सामुदायिक भवन, देवस्थल, गोठ और गोशालाएं इस जीवनशैली का हिस्सा हैं। TCP एक्ट की धारा 14 के अंतर्गत नक्शा पास करवाना और योजनाबद्ध विकास का पालन आवश्यक हो जाता है। इसका सीधा असर इन पारंपरिक निर्माणों पर पड़ता है, जिससे स्थानीयों की सांस्कृतिक पहचान और निर्माण स्वतंत्रता बाधित होती है।
जनजातीय क्षेत्र पहले से ही हिमाचल प्रदेश भू-स्वामित्व और भूमि सुधार अधिनियम, 1972 (धारा 118) के अंतर्गत संरक्षित हैं, जो बाहरी लोगों को भूमि खरीदने से रोकता है। TCP एक्ट की धारा 16 से 20 तक भूमि उपयोग में परिवर्तन (Land Use Change) और विकास के लिए कई प्रकार की अनुमति आवश्यक हो जाती है। इससे आम नागरिकों के लिए नियमों का पालन करना मुश्किल हो जाता है।
उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 244 और अनुसूचित क्षेत्र हिमाचल प्रदेश के किन्नौर, लाहौल-स्पीति और भरमौर (चंबा) को संविधान के अनुसार अनुसूचित क्षेत्र माना गया है। यहां पर भूमि हस्तांतरण पर कड़े प्रतिबंध हैं । पांचवीं अनुसूची एवं पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 – PESA Act, 1996 के तहत जनजातीय क्षेत्रों में इसकी कुछ धाराओं को विशेष रूप से आरक्षित किया गया है।
TCP Act की धारा 15 के अनुसार कोई भी निर्माण TCP विभाग की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता। इसका अर्थ यह हुआ कि स्थानीय पंचायतें और ग्रामीण स्वयं कोई विकासात्मक निर्णय नहीं ले सकते। इससे न केवल विकास की गति धीमी होती है, बल्कि निर्णय की शक्ति भी स्थानीय हाथों से निकल जाती है।
धारा 21 के अनुसार निजी बिल्डर और डेवलपर योजना क्षेत्र में बड़ी परियोजनाएं ला सकते हैं। ऐसे में बाहरी पूंजी को बढ़ावा मिलता है जबकि जनजातीय क्षेत्र के मूल निवासी संसाधन, जानकारी और कानूनी जानकारी के अभाव में पिछड़ जाते हैं।
जनजातीय क्षेत्र मुख्यतः वन भूमि से घिरे होते हैं। ऐसे में वन संरक्षण अधिनियम, 1980 और वन अधिकार अधिनियम, 2006 के अंतर्गत स्वीकृति और अनुमतियों का जाल और भी जटिल हो जाता है। TCP एक्ट इन सभी प्रक्रियाओं से टकराव पैदा करता है।
ऐसे में दो प्रकार के नियम कानून कैसे लागू होंगे प्रशासन ने इस पर कोई जानकारी लोगों को नहीं दी है। उन्होंने कहा कि हितधारकों की आपत्तियों के बावजूद सरकार अगर इस अधिनियम को हम जनजातीय लोगों पर थोपती है तो लोग इसके लिए बड़े स्तर विरोध के लिए भी तैयार हैं।
इस संदर्भ में अतिरिक्त जिला दंड़ाधिकारी भरमौर कुलबीर सिंह राणा ने कहा कि साडा के तहत तैयार किए गए इस विकास योजना मसौदे को लागू करने से पूर्व हितधारकों से एक माह के भीतर आपत्तियां व सुझाव आमंत्रित किए गए थे । चुंकि कल बारह अप्रैल को अवकाश होगा अतः ऑफलाईन माध्यम से इस विषय पर आपत्तियां व सुझाव दर्ज करवाने का आज 11 अप्रैल 2025 अंतिम दिन था जबकि ऑनलाईन माध्यम से 12 अप्रैल तक यह आपत्तियां एवं सुझाव उपायुक्त चम्बा को ईमेल के माध्यम से भेजे जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि उनके पास पहुंचे रिकॉर्ड को वे टीसीपी के उच्चाधिकारियों को आगामी कार्यवाही हेतु भेज देंगे।
गौरतलब है कि भरमौर क्षेत्र को साडा में शामिल किए के लिए जाने के लिए किए जा रहे प्रयासों व तरीकों से स्थानीय लोग अनभिज्ञ हैं। टीसीपी अधिनियम क्या है इस बारे में अधिकांश लोग नहीं जानते हैं। नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग ने लोगों पर लागू किए जाने वाले इस अधिनियम से जागरूक करने के लिए कोई अभियान भी नहीं चलाया है। ऐसे में जिन लोगों को इस अधिनियम के बारे में कुछ जानकारी थी उन्होंने लोगों को इस बारे में जागरूक किया है।