घोघड़, चम्बा 09 मार्च : हिमाचल प्रदेश के ऊंचाई वाले क्षेत्रों, विशेष रूप से 3000 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर पाए जाने वाले गुठलीदार फल जैसे खुमानी, पलम और आड़ू के पौधों पर आमतौर पर मार्च माह के तीसरे सप्ताह के बाद फूल खिलते हैं। लेकिन इस बार मौसम में असामान्य बदलाव के कारण इन फलों के पेड़ों पर समय से पहले ही फूल खिलने लगे हैं। विशेषज्ञों ने इसे जलवायु परिवर्तन और मौसम में अस्थिरता का नतीजा बताया है।
बागवानी विशेषज्ञों के अनुसार, सामान्य परिस्थितियों में खुमानी, पलम और आड़ू के पेड़ सर्दियों में शीतकालीन विश्राम (Chilling Period) में रहते हैं और पर्याप्त ठंड मिलने के बाद ही इनमें वसंत ऋतु में फूल आते हैं। लेकिन इस बार सर्दियों के दौरान अपेक्षित ठंडक न मिलने और फरवरी की शुरुआत में ही तापमान बढ़ने से इन पेड़ों की फूल आने की प्रक्रिया प्रभावित हुई है।
बागवानी विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अगर तापमान में इसी तरह उतार-चढ़ाव बना रहा तो समय से पहले फूल आने के कारण उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। जल्दी फूल खिलने की स्थिति में यदि मार्च-अप्रैल में बारिश या ओलावृष्टि होती है, तो फूल और छोटे फल झड़ सकते हैं, जिससे फसल उत्पादन प्रभावित होगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि तापमान में बढौतरी के कारण भरमौर जैसे ठंडे क्षेत्र में एक सप्ताह जल्दी फूल आ गए हैं। उनका मानना हे कि कुछ हाइब्रिड प्रजातियों में फूल जल्दी आ सकते हैं परंतु स्थानीय प्रजाति व प्राकृतिक रूप से उगे गुठलीदार फलों पर अभी फूल नहीं आए हैं इसलिए बागवानों को चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। हिमालयी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में असामान्य बदलाव हो रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों से हिमाचल प्रदेश के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी सर्दियों का पैटर्न बदल रहा है। पहले जहां लंबे समय तक बर्फबारी और कड़ाके की ठंड रहती थी, वहीं अब कम बर्फबारी और अचानक गर्मी बढ़ने से गुठलीदार फलों के पेड़ों का प्राकृतिक चक्र प्रभावित हो रहा है।
बागवानी विशेषज्ञों ने किसानों और बागवानों को सलाह दी है कि वे अपनी फसलों की सुरक्षा के लिए जैविक और तकनीकी उपाय अपनाएं। समय से पहले फूल झड़ने से बचाने के लिए सिंचाई और पोषक तत्वों का सही प्रबंधन जरूरी है। इसके अलावा, यदि मौसम अनिश्चित बना रहता है, तो परागण को बढ़ावा देने और फलों के संरक्षण के लिए कृत्रिम उपाय अपनाने की आवश्यकता होगी।
जलवायु परिवर्तन और असामान्य मौसम बदलावों को देखते हुए बागवानी वैज्ञानिकों ने किसानों को आगाह किया है कि वे मौसम पूर्वानुमान पर नजर रखें और फसल प्रबंधन के लिए आधुनिक तकनीकों का सहारा लें।