घोघड़, चम्बा, 14 अगस्त : हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध चौरासी मंदिर भरमौर देश भर के श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र है। वैसे भी मणिमहेश यात्रा के कारण इस धार्मिक स्थल का महत्व और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि मणिमहेश मंदिर में पूजा करने से पूर्व चौरासी मंदिर परिसर में स्थित प्राचीन जलकुंड जिसे अर्द्धगंगा कुफरी के नाम से जाना जाता है, में स्नान करने का विधान रहा है। जन्माष्टमी पर्व पर इस जलकुंड में स्थानीय लोग भी स्नान करते हैं।
कुछ वर्षों से अर्द्धगंगा कुफरी के जल के दूषित होने की शिकायतें सामने आती रही हैं जिसे अक्सर नजरंदाज किया जाता रहा है। पखवाड़ा भर पूर्व स्थानीय विधायक डॉ जनक राज ने इस जलकुंड के पानी की शुद्धता का परीक्षण करवाने हेतु सैम्पल मैडिकल कॉलेज चम्बा भिजवाए थे। आज उसकी रिपोर्ट सामने आ गई है। रिपोर्ट में सामने आया है कि इस जलकुंड का पानी प्रदूषित है जोकि न तो पीने व न ही स्नान करने के लिए उपयुक्त है।
मैडिकल कॉलेज की रिपोर्ट के अनुसार कुफरी से लिए पानी के नमूनों में Presumptive Coliform Count 35 MPN/100 ml था।
इसका मतलब है कि 100 मिलीलीटर पानी में अनुमानित 35 कोलीफॉर्म बैक्टीरिया पाए गए। WHO और BIS के मानकों के अनुसार, पीने के पानी में यह मान 0 MPN/100 ml होना चाहिए। 35 का स्तर काफी ज्यादा है और प्रदूषण का स्पष्ट संकेत देता है।
इस रिपोर्ट के दूसरे हिस्से की पुष्टि परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार इन जल नमूनों में Confirmed E. coli Count 02 MPN/100 ml है।
यानी पानी में Escherichia coli बैक्टीरिया मौजूद है। E. coli की उपस्थिति ताज़े मल से प्रदूषण (Faecal contamination) का सीधा प्रमाण है और यह स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है।
परीक्षण रिपोर्ट जारी करते हुए जवाहर लाल नेहरू महाविद्यालय चम्बा के सहायक आचार्य ने इस पर स्पष्ट टिप्पणी लिखी है कि
“Water sample shows faecal contamination (E. coli) needs appropriate water treatment.”
अर्थात:
पानी में मल-संबंधी प्रदूषण है।इस पानी को बिना उपचार के उपयोग करना खतरनाक है। उपयुक्त उपचार के बाद ही उपयोग करें (उबालना, क्लोरीन मिलाना, RO/UV फिल्टर आदि)।
स्थानीय विधायक डॉ जनक राज जोकि स्वयं प्रसिद्ध न्यूरो सर्जन हैं ने कहा कि उक्त जल पीने योग्य नहीं है। यह असंतोषजनक (Unsatisfactory) पानी का सैंपल है। इसमें स्वास्थ्य जोखिम अधिक है क्योंकि E. coli पाया गया है, जो पेट और आंत की गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है, जैसे डायरिया, टाइफाइड, हैजा आदि। इस पानी को बिना उपचार के पीना सुरक्षित नहीं है।
उन्होंने यात्रियों व श्रद्धालुओं से अपील की है कि जब तक अर्द्धगंगा कुफरी के जलकुंड को वैज्ञानिक तरीके से साफ नहीं किया जाता, इसका उपयोग न करें। उन्होंने प्रशासन को निर्देश दिए हैं कि लोगों के स्वस्थ्य के दृष्टिगत यहां आवश्यक दिशानिर्देश जारी किए जाएं।
गौरतलब है कि कुछ वर्ष पूर्व अर्द्ध गंगा कुफरी से बदबू आने लगी थी और इसके पानी में कीड़े भी पनपने लगे थे। लोगों की धार्मिक आस्था से जुड़े इस जल कुंड में दुषित पानी के रिसाव की जांच हेतु जलशक्ति विभाग ने वर्ष 2019 में ऊपरी भाग में स्थित भवन में चल रहे स्कूल के शौचालयों को सीवरेज लाईन से जोड़ने के निर्देश दिए थे। जबकि ऊपरी भाग में सड़क के नीचे बिछी सीवरेज लाईन को वहां से हटा दिया गया था। कोविड काल 2020 व 2021 स्कूल बंद होने पर कुफरी का जल भी साफ हो गया था। परंतु स्कूल खुलने के बाद स्थिति फिर से वैसी ही हो गई।
स्थानीय युवकों द्वारा कई बार इस कुफरी की सफाई की जाती रही है परंतु कुछ समय बाद इसका पानी फिर गंदला हो जाता है ।
इस बारे में जल शक्ति विभाग के सहायक अभियंता विवेक चंदेल ने कहा कि कुफरी के तीन स्रोतों से सैम्पल लिए गए थे जिनमें से दो सैम्पल बिलकुल सही हैं जबकि एक सैम्पल में ई कोलाई बैक्टीरिया कुछ मात्रा में पाया गया है। उन्होंने कहा कि इस जलकुंड के दोबारा सैम्पल लेकर जांच करवाई जाएगी। अगर उसमें भी बैक्टीरिया पाए जाते हैं तो जलकुंड की वैज्ञानिक जांच करवाकर इसका समाधान किया जाएगा। उन्होंने कहा कि लोगों को इस जलकुंड का जल ग्रहण न करने के सूचना यहां लगाई जाएगी।