एनआरएलएम की सहायता से शुरू हुए इस समूह ने पहले वर्ष मटर की फसल से ₹75,000 की कमाई की और फिर धीरे-धीरे एप्पल सीडर विनेगर, जैम, चटनी, अचार, जूस और अब सेब की बर्फी तक का सफल सफर तय किया।
ऐसे बनती है सेब की बर्फी – समूह की सदस्य सपना बताती हैं कि सर्वश्रेष्ठ सेबों को साफ कर उनका पल्प निकालकर ड्राई फ्रूट्स के साथ पकाया जाता है और तीन से चार दिन प्लेट में जमाने के बाद बर्फी तैयार होती है। एक वर्ष तक खराब न होने वाली यह बर्फी स्वाद और गुणवत्ता में किसी भी अन्य मिठाई से कम नहीं है।
समूह की प्रधान आशु ठाकुर के अनुसार, हर महीने कुल्लू और कामधेनु सहित विभिन्न स्थानों पर ₹35,000 तक की बर्फी बेची जाती है। बर्फी की बढ़ती मांग को देखते हुए अब ऑनलाइन डिलीवरी की सुविधा भी शुरू कर दी गई है। एक डिब्बे की कीमत ₹325 रखी गई है।
शिमला मुख्यालय में रिज मैदान के पास पदमदेव परिसर में लगे ‘आकांक्षी हाट’ से यह बर्फी खरीद सकते हैं। यह स्टॉल छौहारा और कुपवी विकास खंड के तहत जय देवता जाबल नारायण समूह द्वारा लगाया गया है।
उपायुक्त शिमला अनुपम कश्यप ने कहा कि जिले के स्वयं सहायता समूहों को प्रशिक्षण, स्टॉल और अन्य सुविधाएं समय-समय पर दी जा रही हैं ताकि स्थानीय उत्पादों को वैश्विक पहचान मिल सके।
वहीं एनआरएलएम मिशन के एग्जीक्यूटिव कुशाल सिंह ने कहा कि यह प्रयास गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और आजीविका बढ़ाने की दिशा में अहम कदम है।
शिमला के इस स्वयं सहायता समूह का अनुकरण करके प्रदेश के सेब बहुल क्षेत्रों में सेब पर आधारित इस प्रकार उत्पाद तैयार करके इससे बागवानों की आय के साथ साथ गृहणियां भी रोजगार के रूप में इसे अपना सकती हैं।
You cannot copy content of this page