घोघड़, शिमला, 22 मई 2025 : पांच वर्ष पूर्व भरमौर क्षेत्र में चिकित्सक का एक भी पद खाली नहीं था। वर्ष 2022 में सरकार बदलते ही इस क्षेत्र में तैनात चिकित्सक, पैरा मैडिकल स्टाफ सहित नर्सों के पद रिक्त होने लगे। स्थिति यह हो गई कि नागरिक अस्पताल भरमौर जहां 11 चिकित्सक थे आज वहां मात्र दो चिकित्सक रह गए हैं।
हिमाचल प्रदेश विधानसभा के भरमौर-पांगी क्षेत्र से विधायक डॉ. जनक राज ने राज्य सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी अनदेखी के खिलाफ हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने एक लोकहित याचिका (Civil Writ Petition) दायर कर मांग की है कि भरमौर उपमंडल में सभी रिक्त डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों की नियुक्ति तुरंत की जाए।
हिप्र उच्च न्यायालय की वेबसाईट पर प्रसारित जानकारी अनुसार इस याचिका का वर्तमान में दर्जा “Pending” है और फिलहाल यह “NOTICE BEFORE ADMISSION” की अवस्था में है।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता सुमन ठाकुर और रविंदर सिंह ठाकुर पैरवी कर रहे हैं। यह मामला संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत दायर किया गया है।
इस याचिका में राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग को प्रतिवादी बनाया गया है, जिसमें प्रधान सचिव स्वास्थ्य, सचिव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण व निदेशक, स्वास्थ्य सेवाएं हिप्र को शामिल किया गया है। याचिका में विशेष रूप से भरमौर क्षेत्र में डॉक्टरों की कमी, चिकित्सीय ढांचे की दयनीय स्थिति और आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता को लेकर चिंता जताई गई है।
यह याचिका ऐसे समय में दायर की गई है जब पांगी–भरमौर जैसे दूरस्थ क्षेत्रों में लगातार स्वास्थ्य सेवाओं की अनदेखी के आरोप लगते रहे हैं। स्थानीय विधायक द्वारा इस दिशा में कई बार विधानसभा में भी आवाज़ उठाई गई है, लेकिन ठोस समाधान अब तक नहीं मिल पाया है।
प्राप्त जानकारी अनुसार याचिका में उल्लेख किया गया है कि भरमौर, जो कि चम्बा जिला से लगभग 60 किलोमीटर दूर एक दुर्गम क्षेत्र है, वहाँ एक सिविल अस्पताल, 1 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 3 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 19 उप-स्वास्थ्य केंद्र हैं। याचिका में बताया गया है कि भरमौर सिविल अस्पताल, जो कि 21 बिस्तर वाला अस्पताल है, जहां हर महीने 2000 से अधिक ओपीडी मरीज आते हैं और हर दिन औसतन 150 मरीज देखे जाते हैं। अस्पताल में 11 डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं, परन्तु केवल 2 डॉक्टर कार्यरत हैं, जिससे उनपर क्षमता से अधिक कार्यभार है।
मई माह में 10 प्रसव संभावित हैं, लेकिन उनकी देखरेख केवल एक डॉक्टर और एक “दाई” के सहारे हो रही है, जो चिकित्सा मानकों के प्रतिकूल है।
याचिकाकर्ता ने आगाह किया है कि जुलाई-अगस्त में मणिमहेश यात्रा के दौरान 5 से 6 लाख तीर्थयात्री भरमौर आते हैं। ऐसे में डॉक्टरों और स्वास्थ्य स्टाफ की भारी कमी से कोई भी आपात स्थिति पैदा हो सकती है।
दायर याचिका के अनुसार भरमौर ब्लॉक में कुल 138 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 94 पद खाली पड़े हैं। इसके अतिरिक्त 19 स्वीकृत महिला एवं पुरुष स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के पदों में से 17 रिक्त हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र होली में 15 में से 13 पद, पीएचसी गरोला में 7 में से 5 पद, और पीएचसी मांधा में 4 में से 3 पद खाली हैं।
डॉ. जनक राज की इस याचिका के अनुसार यह स्थिति भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार) और अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है। इसके अतिरिक्त, राज्य सरकार पर अनुच्छेद 38 और 47 के अंतर्गत जन स्वास्थ्य की समान और न्यायसंगत व्यवस्था सुनिश्चित करने का दायित्व भी है।
विधायक जनक राज की मांग –
भरमौर क्षेत्र में सभी रिक्त डॉक्टरों, विशेषज्ञों और स्टाफ नर्सों की तत्काल नियुक्ति।
स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों में स्वास्थ्य कर्मियों की तैनाती।
स्वास्थ्य सेवाओं के लिए समयबद्ध कार्ययोजना तैयार की जाए।
दुर्गम क्षेत्रों में सेवा देने वाले डॉक्टरों को विशेष भत्ता और आवासीय सुविधाएं दी जाएं।
न्यायिक सुनवाई की अगली तिथि की प्रतीक्षा है।
गौरतलब है कि डॉ. जनक राज ने कई बार इस मुद्दे को विधानसभा में भी उठाया है, लेकिन सरकार ने इसे नजरअंदाज किया। अंततः लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु उन्हें न्यायालय की शरण लेनी पड़ी।
अब देखना यह होगा कि अदालत इस मामले में क्या रुख अपनाती है और क्या भरमौर क्षेत्र के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाने की दिशा में कोई निर्णायक पहल होती है।