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घोघड़, चम्बा 02 नवम्बर : भरमौर की कौशल्या देवी — परंपरा की संरक्षक और आत्मनिर्भरता की मिसाल बनकर उभरी हैं। भरमौर की कौशल्या देवी ने पारंपरिक गद्दी परिधानों की हस्तनिर्मित कला को न केवल जीवित रखा है, बल्कि इसे अपने और कई अन्य बेटियों के आत्मनिर्भर बनने का माध्यम भी बना दिया है।

करीब 25 वर्षों से कौशल्या देवी पारंपरिक परिधान जैसे नुआंचड़ी, चोला, डोरा, नूआंचा (दूल्हे का परिधान), चोळी, खड़वास और परांदू आदि की सिलाई करती आ रही हैं। उनकी बनाई हुई पोशाकें न सिर्फ पूरे भरमौर क्षेत्र में बल्कि कांगड़ा जिले तक भेजी जाती हैं।

कौशल्या देवी बताती हैं कि यह कला उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। इसी काम की बदौलत उन्होंने अपने बेटे को कनिष्ठ अभियंता (विद्युत) के पद तक पहुंचाया, अपनी बेटियों की शादियाँ कीं और नया घर भी बनाया।

उन्होंने न केवल खुद को सशक्त बनाया, बल्कि कई स्थानीय बेटियों को भी इस कला में प्रशिक्षित कर आत्मनिर्भर बनाया है। वर्तमान में भी आधा दर्जन से अधिक युवतियाँ उनके पास रोजाना इस पारंपरिक सिलाई-कढ़ाई का हुनर सीखने आती हैं।

कौशल्या देवी की कहानी इस बात का प्रमाण है कि अगर लगन और परिश्रम हो तो पारंपरिक कला भी आज के दौर में आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण का मजबूत आधार बन सकती है।

कौशल्या देवी, गाद्दे परिधान तैयार करते हुए

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