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घोघड़,नागपुर 02 अक्तूबर : विजयादशमी के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने नागपुर में पारंपरिक समारोह को संबोधित किया। अपने वार्षिक उद्बोधन में उन्होंने देश के सामने खड़ी आंतरिक और बाहरी चुनौतियों की ओर इशारा किया, सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा का आह्वान किया और संघ की सामाजिक भूमिका को रेखांकित किया।

बाहरी ताकतों और आंतरिक षड्यंत्रों पर चेतावनी

भागवत ने पड़ोसी देशों में हालिया राजनीतिक हलचलों और तख्तापलट जैसी घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि इनके पीछे अंतरराष्ट्रीय शक्तियों की सक्रियता दिखाई देती है। उन्होंने आगाह किया कि भारत के भीतर भी ऐसे प्रयास हो सकते हैं जिनका उद्देश्य समाज में अस्थिरता फैलाना है। सरसंघचालक ने कहा कि नागरिकों को सतर्क और संगठित रहना होगा ताकि कोई भी ताकत समाज की एकजुटता को तोड़ न पाए।

सांस्कृतिक और वैचारिक चुनौतियाँ

अपने भाषण में उन्होंने ‘वोकिज्म’ और ‘सांस्कृतिक मार्क्सवाद’ जैसी अवधारणाओं की आलोचना की। भागवत का तर्क था कि ये विचार भारतीय परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों के विपरीत हैं और समाज को भ्रमित करते हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहना चाहिए और नई पीढ़ी में अपने विरासत के प्रति गर्व पैदा करना चाहिए।

राष्ट्र और सेवा का संदेश

भागवत ने देशभक्ति, अनुशासन और सेवा-भाव को राष्ट्रीय चरित्र का आधार बताया। उन्होंने सेना, अर्धसैनिक बलों और समाज सेवा से जुड़े संगठनों की सराहना की और कहा कि संघ स्वयंसेवक हर स्थिति में समाज और राष्ट्र के लिए तत्पर रहते हैं।

हिंदू समाज में एकजुटता

उन्होंने जाति, उपजाति और क्षेत्रीयता के नाम पर होने वाले विभाजनों की आलोचना करते हुए कहा कि ऐसे भेद समाज की शक्ति को कमजोर करते हैं। भागवत ने कहा कि सामाजिक समरसता ही राष्ट्र की मजबूती की कुंजी है और संघ लगातार इसी दिशा में कार्य कर रहा है।

आरएसएस की भूमिका और गतिविधियाँ

संघ अपने शताब्दी वर्ष के समीप पहुँचते हुए शिक्षा, सेवा और सांस्कृतिक गतिविधियों पर विशेष ध्यान दे रहा है। संघ परिवार के संगठन जैसे विद्या भारती (शिक्षा क्षेत्र), सेवा भारती (सामाजिक सेवा), और राष्ट्रसेविका समिति (महिला शाखा) पूरे देश में सक्रिय हैं। आपदा राहत, स्वास्थ्य शिविरों और शिक्षा प्रसार में इन संगठनों की भागीदारी अक्सर चर्चा में रहती है।

 मार्च 2025 तक संघ की देशभर में लगभग 83 हज़ार से अधिक शाखाएँ सक्रिय बताई जाती हैं। ये शाखाएँ दैनिक, साप्ताहिक और मासिक रूप से आयोजित की जाती हैं। संघ का लक्ष्य अगले कुछ वर्षों में सक्रिय स्वयंसेवकों की संख्या को एक करोड़ (10 मिलियन) तक पहुँचाने का है। वर्तमान में लाखों स्वयंसेवक नियमित रूप से शाखाओं और सेवा कार्यों से जुड़े हुए हैं। वर्ष 2010 में शाखाओं की संख्या लगभग 40 हज़ार थी, 2015 तक यह 50 हज़ार के पार गई और 2025 में बढ़कर 80 हज़ार से अधिक हो गई।

ध्यान देने योग्य है कि संघ पारंपरिक सदस्यता सूची सार्वजनिक नहीं करता; उसकी गतिविधियों के आँकड़े मीडिया रिपोर्टों और आंतरिक आकलनों पर आधारित होते हैं, इसलिए विभिन्न स्रोतों में थोड़ी भिन्नता देखी जाती है।

विजयादशमी मंच से यह स्पष्ट हुआ कि आरएसएस शताब्दी वर्ष तक विस्तार और सेवा दोनों पर बल देना चाहता है। संघ ने 1 लाख शाखाओं और 1 करोड़ स्वयंसेवकों का लक्ष्य रखा है। साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में उसकी गतिविधियों को और व्यापक बनाने की योजना है।

संघ की बढ़ती उपस्थिति के साथ-साथ आलोचनाएँ भी सामने आती रही हैं। आलोचक इसे हिंदू राष्ट्र की विचारधारा और राजनीतिक प्रभाव से जोड़कर देखते हैं, जबकि समर्थक मानते हैं कि यह संगठन सांस्कृतिक संरक्षण और समाज सेवा के माध्यम से राष्ट्र निर्माण में योगदान दे रहा है।

डॉ. मोहन भागवत का विजयादशमी सम्बोधन एक ओर देश की सुरक्षा और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा पर बल देता है, वहीं दूसरी ओर यह संघ की भविष्य की योजनाओं और सामाजिक विस्तार को भी सामने लाता है। संघ के आँकड़े बताते हैं कि वह देश के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठनों में से एक है और आने वाले वर्षों में उसकी सक्रियता और भी बढ़ने की संभावना है।


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