Ghoghad.com

घोघड़, भरमौर, 18 अगस्त : भारतीय पचांग के भाद्रपद माह को गद्दी समुदाय में काला महीना के नाम से जाना जाता है। जिसकी प्रथम तिथि को पतरोड़ू पर्व के रूप में मनाया जाता है।

पतरोड़ू प्रतीक है मौसम में बदलाव के साथ गद्दी जनजाति के वार्षिक क्रियाकलाप में बदलाव का। बरसात का मौसम समाप्ति पर होता है और खेतों में फसलें यौवन पर। पहाड़ी क्षेत्र भरमौर में इस समय 80 प्रतिशत भूमि पर सेब ही छाया है परंतु शेष भूमि पर अब भी पारम्परिक फसलें मक्की, जौ, गेहूं, रौंग(राजमाह), उड़द, ओहल, कोलथ, चौलाई, कोदरा, च्णै इत्यादि उगाई जाती हैं।

बुजुर्गों के अनुसार पतरोड़ू त्योहार पर चौला(चौलाई) जिसके विकसित पत्तों के पकौड़े पकाने की परम्परा के कारण ही इस त्योहार का नाम पतरोड़ू पड़ा है। इस अवसर पर भरमौर क्षेत्र की ग्राम पंचायत में पतरोड़ू जातरों (मेलों) का आयोजन किया जाता है। पतरोड़ू को लौहल स्पीति घाटी में अपनी भेड़-बकरियां चराने गए गद्दियों के अब लौटने के समय सूचक भी माना जाता है।

नौण-पनिहारों पर इन नवविवाहितों व युवतियों लोक गीत स्वर भी अक्सर सुनने को मिल जाते हैं। चूंकि नव नवविवाहिताओं को इस माह मायके में रहने के लिए भेजने की परम्परा है। ऐसे में इन लोकगीतों में विरह के स्वरों की गूंज कुछ अधिक होती है।

पतरोड़ू जातर समिति अध्यक्ष ललित ठाकुर बताते हैं कि इस वार्षिक त्योहार पर खणी में तीन दिवसीय मेलों का आयोजन किया जा रहा है । जिसमें भ्याट के करीब आधा दर्जन गांवों के लोग अपनी पारम्परिक संस्कृति का प्रदर्शन लोक नृत्य व लोक गायन से करते हैं। उन्होंने कहा कि कि मेलों के दौरान सांध्यकालीन सांस्कृतिक कार्यक्रम व खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जा रहा है जिसमें वॉलीबाल व बैडमिंटन प्रमुख हैं।

पंचायत के प्रधान श्याम ठाकुर व पूर्व उपप्रधान रिंकेश ठाकुर बताते हैं कि आज के सड़क मार्ग से पूर्व भरमौर मुख्यालय को चम्बा जिला मुख्यालय व होली घाटी से जोड़ने का मार्ग खणी से होकर गुजरता था। रियासत के राजा इसी गांव में अपना पड़ाव भी डालते थे। खणी गांव से मणिमहेश कैलाश के दर्शन भी होते है। चूंकि प्रचीन समय में खणी गांव से होकर ही तमाम रास्ते भरमौर मुख्यालय तक पहुंचते  थे तो मणिमहेश कैलाश के प्रथम दर्शन भी इसी स्थान से माने जाते है। इसी कारण इस स्थान पर प्रचीन शिव मंदिर बी मौजूद है जिसके प्रांगण में वार्षिक पतरोड़ू मेला आयोजित किया जाता है।

क्षेत्र के वरिष्ठ नागरिक एवं सेवानिवृत अध्यापक अमर सिंह बताते हैं कि भ्याट एक गांव नहीं बल्कि दर्जन भर गांवों का समूह है। पूर्व में सभी गांवों से लोग अपनी कुलदेवी या कुलदेवता के चिन्ह के साथ खणी के इस द्रोबी मैदान में जातर लेकर पहुंचते व हर्षोल्लास के साथ मनाते थे। यहां के कुल देवी-देवताओं में देवी बमणी,देवी भरमाणी, देवी गिरडासनी, नाग देवता इत्यादि हैं।  उन्होंने बताया कि समय के साथ आज युवा वर्ग भी इन जातरों के महत्व को समझने लगा है।

इन मेलों को देखने के लिए भरमौर क्षेत्र के सैकड़ों लोग प्रतिदिन यहां पहुंचते हैं।

 


Ghoghad.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page