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घोघड़, 20 जून 2025 : भरमौर क्षेत्र में नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग (TCP) द्वारा लागू की जा रही विशेष क्षेत्र विकास योजना (SADA Plan) को लेकर स्थानीय जनता, पंचायतों और जन प्रतिनिधियों में गहरी असंतोष की भावना पनप रही है। विशेष रूप से यह चिंता अनुसूचित जनजातीय समुदाय के पारंपरिक अधिकारों और जीवनशैली को लेकर है। भरमौर, एक संवेदनशील जनजातीय क्षेत्र है, जहां के लोगों की धार्मिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक गतिविधियां उनके जीवन का मूल हिस्सा हैं।

गत 17 जून को टीसीपी के तत्वावधान में उपायुक्त चम्बा की अध्यक्षता में हुई बैठक में उपमंडल नगर एवं ग्राम योजना कार्यालय चम्बा के सहायक नगर योजनाकार (ATP) ने इन आपत्तियों को तर्कसंगत नहीं  माना है । मसौदे पर लोगों द्वारा दर्ज आपत्तियों पर टिप्पणी देते हुए कहा है कि:

“मसौदा योजना से जनजातीय लोगों की पारम्परिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व रहन-सहन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। साडा का उद्देश्य भरमौर के निकटवर्ती मोहल्लों में योजनाबद्ध एवं विनियमित भौतिक विकास सुनिश्चित करना है।”

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पूर्व में वर्ष 2004 व 2014 की अधिसूचनाओं के माध्यम से इस क्षेत्र के भूमि उपयोग को नियोजित कर लागू किया जा चुका है। मौजूदा भूमि उपयोग में शामिल भवनों को नियमानुसार अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) जारी किए जा सकते हैं।

स्थानीय आपत्तियां और पंचायतों का इन मुद्दों पर है विरोध

भरमौर, सचूईं और घरेड़ पंचायतों ने प्रस्ताव पारित कर साडा विकास योजना के मसौदे पर आपत्ति दर्ज करवाई थी। इनका कहना है कि इस योजना के लागू होने से यहां के लोग भारी शुल्कों, जटिल अनुमति प्रक्रियाओं और प्रशासनिक हस्तक्षेप का सामना करने को मजबूर होंगे। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह योजना उनकी पारंपरिक जीवनशैली, धार्मिक आस्थाओं और सामाजिक संरचना पर सीधा प्रभाव डालेगी।

स्थानीय निवासी और भरमौर के 22 से अधिक हितधारकों ने अपनी आपत्तियों में यह तर्क दिया कि साडा जैसे शहरी नियोजन तंत्र को जनजातीय क्षेत्र में लागू करना एक प्रकार का गैर जरूरी  हस्तक्षेप  है, जो संविधान द्वारा अनुसूचित जनजातियों को दिए गए विशेष अधिकारों के विपरीत है।

 कुछ पहलुओं में यह योजना संविधान की पांचवीं अनुसूची और अनुसूचित जनजाति अधिकार अधिनियम, 2006 (The Scheduled Tribes and Other Traditional Forest Dwellers (Recognition of Forest Rights) Act, 2006 – FRA) के प्रावधानों का उल्लंघन प्रतीत होती है:

अनुच्छेद 244 और पंचायती (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996 (PESA Act)

PESA के तहत अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों में किसी भी भूमि उपयोग परिवर्तन या नियोजन संबंधी गतिविधि से पहले ग्राम सभा की सहमति आवश्यक होती है। भरमौर में ग्राम पंचायतों द्वारा पारित विरोध प्रस्तावों को दरकिनार करना इस प्रावधान की अनदेखी है।

FRA के तहत जनजातीय समुदायों को उनकी पारंपरिक भूमि, संसाधनों और आजीविका से जुड़े अधिकार प्राप्त हैं। यदि योजना के तहत किसी समुदाय की भूमि के उपयोग या उनके पारंपरिक कार्यों पर रोक लगती है या शुल्क लगता है, तो यह इस अधिनियम के ‘Community Rights’ के उल्लंघन के अंतर्गत आता है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 29 जनजातीय लोगों की सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करता है। यदि नियोजन नियम धार्मिक स्थलों, रीति-रिवाजों या सामाजिक तंत्र पर प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव डालते हैं, तो यह अनुच्छेद 29 का उल्लंघन माना जा सकता है।

TCP द्वारा दी गई तकनीकी सफाई और प्रक्रिया चाहे जितनी भी सुव्यवस्थित क्यों न हो, जनजातीय क्षेत्र में कोई भी योजना तब तक स्वीकार्य नहीं हो सकती जब तक वह वहां के लोगों की संस्कृति, परंपरा और संवैधानिक अधिकारों की पूरी तरह रक्षा न करे।

भरमौर जैसे संवेदनशील जनजातीय क्षेत्र में ‘विकास’ केवल आधारभूत ढांचे तक सीमित नहीं रह सकता, बल्कि उसे वहां की पहचान, संस्कृति और स्वायत्तता के साथ संतुलन बनाकर चलना होगा।

स्थानीय लोगों की मांग है कि इस योजना को लागू करने से पूर्व ग्राम सभाओं की पुनः औपचारिक सहमति ली जाए। एक स्वतंत्र जनजातीय विशेषज्ञ समिति द्वारा इस योजना का सामाजिक प्रभाव आकलन कराया जाए। TCP को अपने नियमों में जनजातीय हितों की रक्षा के लिए विशेष प्रावधान शामिल करने चाहिए।


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