घोघड़ न्यूज चम्बा 08 सितम्बर : जन्माष्टमी पर्व से आरम्भ होने वाली जनजातीय क्षेत्र भरमौर की जातरें (मेले) आरम्भ हो चुके हैं आठ दिवसीय मेलों में से आज दूसरा मेला था। देवी दवताओं के लिए समर्पित इन जातरों का शुभारम्भ चौरासी मंदिर प्रांगण में स्थापित चामुंडा देवी मंदिर से होता है। चौरासी मंदिर पुजारी छज्जू राम शर्मा व लखना देवी उपासक हरिराम ने इन मंदिरों की प्रतीक रजत छड़ियों को चामुंडा़ मंदिर में पारम्परिक वाद्ययत्रों की धुनों के साथ पूजा अर्चना के उपरांत जातर आरम्भ करते हुए इन्हें चौरासी मंदिर के खुले भाग में स्थापित कर जातर शुरू की। इस जातर में स्थानीय लोगों ने अपना पारम्परिक नृत्य किया। इस अवसर पर स्थानीय लोगों की भागीदारी भले ही नगण्य रही हो परन्तु परम्पराओं का निर्वहन निरन्तर किया जा रहा है।
इस अवसर पर हमने मंदिर पुजारी व छड़ीकार छज्जू राम शर्मा से इन जातरों के सम्बध में बातचीत की तो उन्होंने कहा कि इन प्राचीन जातरों के मौलिक स्वरूप में बहुत बदलाव आ गया है। लोगों को आजकल इन पारम्परिक मेलों में भागीदारी दर्ज करवाने के लिए वक्त ही नहीं मिलता जबकि तीस वर्ष पूर्व यहां पारम्परिक नृत्य के लिए स्थान कम पड़ जाता था। हजारों लोग मेले में अपनी उपस्थिति देते थे।
मेलों में लोगों की भागीदारी कम होने के कारण पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि मेलों का व्यवसायीकरण हो गया है। इसके मौलिक रूप को बचाने के लिए प्रयास करने के बजाए चौरासी मंदिर प्रांगण में अधिक से अधिक दुकानें स्थापित कर धन कमाने के साधन बढ़ाए जा रहे हैं। जिससे धार्मिक, स्थानीय पारम्परिक गतिविधियों के लिए पर्याप्त स्थान नहीं बचता ।
स्थानीय प्रशासन भी यहां की संस्कृति को बचाने के प्रयास करने के बजाए राजस्व बढ़ाने के संसाधन बढ़ाने पर जोर दे रहा है। उन्होंने कहा कि अभी भी गद्दी संस्कृति व परम्पराओं को बचाने में देर नहीं हुई है। सरकार प्रशासन के साथ साथ स्थानीय लोगों को भी इसे बढ़ावा देने के लिए आगे आना होगा।