घोघड़,चम्बा , 18 अक्टूबर : ग्रामीण युवाओं को कौशल प्रशिक्षण के अंतर्गत आज जीवामृत घनाजीवामृत बनाने की विधि व उसके लाभ की जानकारी दी।
उप निर्देशक परियोजनाओम प्रकाश अहीर ने प्रशिक्षण में किसानों को बताया कि न्यूनतम लागत अधिक उपज उच्चगुणवत्ता, स्वस्थ पर्यावरण से ही किसानों और बागवानों को समृद्ध बनाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि रासायनिक खादों उर्वरकों के कारण हमारी उपजाऊ भूमि बंजर हो चुकी है। इसलिए अब प्राकृतिक खेती पर बल दिया जा रहा है। किसानों को बागबानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। ताकि हम भूमि को बंजर होने से बचा सकें। साथ ही साथ खेतों में पैदावार को बढ़ा सकें।
उन्होनें बताया कि हम जो स्प्रे करते हैं उसके कारण खेतों से पौधों से सब्जियों से हमारे मित्र कीट भी मर जाते हैं। जिसके लिये हम को प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग कर के कीट नाशक बना कर उनका प्रयोग करना चाहिये।
इस के उपरांत ऊषा ठाकुर बीटीएम , शुभम एटीएम तथा प्रियंका शर्मा एटीएम ने किसानों बागवानों को जीवामृत घनाजीवामृत बनाने की विधि बताई उनके लाभ बताये। उन्होनें कहा कि देसी गाय के गोबर व गौमूत्र से ही यह हम अपने घरों में बना सकते हैं। इनसे हम भूमि की लुप्त होती शक्ति को फिर से उपजाऊ बना सकते हैं।
जीवामृत से भूमि में जो देसी केंचुए पैदा होंगें उनका लाभ किसानों को मिलेगा।
उन्होंने कहा कि इसे बनाने के लिए 10 किलो गाय के गोबर में 10 लीटर गोमूत्र, एक किलो गुड़, एक किलो दाल का आटा और एक मुट्ठी उपजाऊ मिट्टी मिलाएं। अब इस मिश्रण में 200 लीटर पानी डालकर घोलें।
2 से 4 दिन बाद यह मिश्रण इस्तेमाल के लिये तैयार हो जाएगा। उपयोग की विधि-एक एकड़ जमीन के लिये 200 लीटर जीवामृत मिश्रण की जरूरत पड़ती है। किसान को अपनी फसलों में महीने में 2 बार छिड़काव करना होगा। इसे सिंचाई के पानी में मिला कर भी उपयोग किया जा सकता।
प्रशिक्षण में किसानों को बताया कि घनाजीवामृत बनाने के लिए 200 किलो गोबर, एक किलो गुड़, एक किलो बेसन, 100 ग्राम खेत की जीवाणुयुक्त मिट्टी, पांच लीटर गोमूत्र इन सभी चीजों को फावड़ा से अच्छे से मिला लें।
घनजीवामृत, जीवामृत की तरह ही खाद नहीं बल्कि असंख्य जीवाणुओं का जामन है । इसे भी हम देसी गाय के गोबर, मूत्र और कुछ घरेलु चीजों के प्रयोग से बिना किसी या बहुत ही कम लागत के तैयार करते हैं।
बीजामृत देसी गाय के गोबर, मूत्र एवं बुझा चूना आधारित घटक से बीज एवं पोष-जड़ों पर सूक्ष्म जीवाणु आधारित लेप करके इनकी नई जड़ों को बीज या भूमि जनित रोगों से संरक्षित किया जाता है। बीजामृत प्रयोग से बीज की अंकुरण क्षमता में अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई है। इस मिश्रण को 48 घंटे छांव में फैलाकर जूट की बोरी से ढक दें उसके उपरांत उसका उपयोग किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि अन्य जैविक खाद को तैयार होने में महीनों लगते हैं, लेकिन आप जीवामृत को एक सप्ताह के भीतर तैयार कर सकते हैं।
उन्होंने किसानों बागवानों से अनुरोध किया कि इस तकनीक को अपना कर अपनी आय को दोगुना करें।
डॉ. राजीव रैणा इंचार्ज कृषि विज्ञान केंद्र चंबा ने भी इस अवसर पर किसानों बागबानों को प्रोत्साहित किया।
उन्होंने कहा हम को नई तकनीकों को अपना कर अपने खेतों की उपजाऊ भूमि को बचाना है। हम को सब्जियों , फलों व अन्य फसलों की पैदावार को दोगुना बढ़ाना है। इसके लिए प्राकृतिक संसाधनों को अपनाना होगा।