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घोघड़ न्यूज चम्बा 13 सितम्बर : हिप्र का वनवासी गद्दी समुदाय अपनी सांस्कृतिक विरासत का प्रदर्शन खुले तौर पर भले ही न करता हो परंतु अपने सामजिक, धार्मिक कार्यक्रमों में इस समुदाय की परम्पराएं व संस्कृति खुलकर सामने आती है। इन अवसरों पर गद्दी समुदाय के महिला-पुरुष अपने पारम्परिक पहनावे,आभूषणों से सजधज कर लोकगीतों व शिव एंचलियों पर डंगी, घुरैई व डंडारस नृत्य करते हैं।

गद्दी संस्कृति के निर्वहन में जनजातीय क्षेत्र भरमौर के मेले बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। अप्रौल से सितम्बर माह तक यहां विभिन्न गांवों में मेलों का आयोजन किया जाता है जिन्हें स्थानीय बोली में जातरें कहा जाता है। इन जातरों में से भरमौर मुख्यालय स्थित चौरासी मंदिर प्रांगण में होने वाली जातरों की अपनी विशेषता है।

जन्माष्टमी पर्व के साथ यहा सात दिवसीय जातरों का आयोजन किया जाता है। हर जातर भिन्न देवता को समर्पित होती है। परंतु सातवीं व अंतिम जातर को अधिक महत्व प्राप्त है। यूं तो अन्य छहों जातरों में गद्दी समुदाय के लोग पारम्परिक नृत्य करने पहुंचते हैं परंतु सातवीं जातर में मुख्यालय सहित आसपास मलकौता, बाड़ी, सचूईं, गोठडू, पंजसेई, घरेड़, गोसण, पट्टी आदि गांवों के लोग एक साथ अपने पारम्परिक परिधानों में नृत्य करने पहुंचते हैं। हर गांव के लोग अपने-अपने कुल देवता के मंदिर प्रांगण से जातर लेकर चौरासी मंदिर प्रांगण में पहुंच कर नृत्य करते हैं।

आज भी भरमौर मुख्यालय में बड़ी जातर का आयोजन हुआ जिसमें विभिन्न गांवों के महिला पुरुषों ने नृत्य कर अपनी संस्कृति से दुनिया को रुबरू करवाया। दोपहर बाद करीब चार बजे से यह जातर सायं छः बजे तक जारी रही। शहनाई, ढोलक, नगाड़े की ताल पर उठते-पड़ते कदमों के साथ लय में लहराते हाथों की मुद्राएं व उसे अनुरूप चेहरे के बदलते भावों को देख हर कोई सम्मोहित हो गया।

इस वार्षिक उत्सव का इंतजार फिर से आरम्भ हो गया है।


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