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घोघड़ न्यूज चम्बा, 18 सितम्बर : देव भूमि हिमाचल प्रदेश के हर गांव की अपनी कहानी व इतिहास है। जिनमें कुछ को दुनिया जाती है है जबकि कुछ आज भी अनदेख व अनजाने हैं। हिप्र के जनजातीय क्षेत्र भरमौर की ग्राम पंचायत कुगती भी ऐसे गांवों में से एक है जिसकी भौगोलिक स्थिति, परम्पराएं, इतिहास, लोगों की जीवनशैली सहित कई पहलुओं से दुनिया अनभिज्ञ है जबकि हर वर्ष इसी पंचायत के कार्तिक मंदिर के विषय में लाखों लोग जानकारी रखते हैं। आज हम इसी पंचायत से जुड़े कुछ रोचक पहलुओं के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाएंगे।

गत 17 सितम्बर 2023 हिंदु कैलेंडर के अश्विन मास की प्रथम तिथि को गांव में तीन दिवसीय मेला आरम्भ हुआ । गद्दी समुदाय अपनी बोली में मेला को जातर कहते हैं। इस मेले में ग्रामीणों के ईष्ट देवता सिद्ध बाबा की चेतना में में उनका चेला (जिस व्यक्ति में देवचेतना जागृत होती है) राख का श्ृंगार, कंधे पर झोली लटकाए, हाथ में चिमटा लिए ब्रह्म महूर्त में गांव में भीक्षा मांगने निकला। लौटने पर सिद्ध बाबा मंदिर के पास आसन जमाकर देव अनुभूति में वहां पहुंचे श्रद्धालुओं को आशीर्वाद व प्रसाद दिया । इस दौरान वहां सैकड़ों लोग सिद्ध बाबा का आशीर्वाद लेने पहुंचे थे। सिद्ध चेला जिस भी व्यक्ति के कंधे पर चिमटा या हाथ रखते वह देवचेतना वशीभूत होकर नाचते हैं। इस प्रकार एक दूसरे को चिनटे से छूकर देवचेतना में लाने की एक शृंखला सी आरम्भ हो जाती है जिसमें दर्जनों लोग एक साथ शामिल हो जाते है। अपने तन को भस्म से सराबोर करते, श्रद्धालुओं को भस्म का अभिषेक करते हुए चेलों को देखने का अनुभव प्राप्त करने के लिए लोग वर्ष भर इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं।

गांव के 95 वर्षीय बुजुर्ग दीनानाथ गांव में आयोजित हो रहे इस मेले को सिद्ध बाबा से जोड़ते हुए कहते हैं कि सदियों पूर्व एक डाकिनी ने इस गांव में बहुत आतंक मचाया हुआ था। हमारे एक पूर्वज खरीफ की फसल एकत्रित करने के लिए दलोटू नामक स्थान पर स्थित खेतों में थे तो उस डाकिनी के हमले से बचने के लिए वे मणिमहेश कैलश पर्वत की दिशा की ओर भागे। नाले के पास पांटी नामक स्थान पर धूनी लगाए ध्यान में बैठे बाबा से मदद मागी। जिस पर उस बाबा (साधू) ने धूने की राख डाकिनी पर उड़ाकर उसे भस्म कर दिया। इस घटना के बाद कुगति निवासिओं के पूर्वज द्वारा उस सिद्ध बाबा को कुगति गांव लाकर बसाया गया । चूंकि उस समय खरीफ की फसल तैयार हो रही थी तो ग्रामीणों ने सिद्ध बाबा को नई फसल अर्पित कर उन्हें अपना कुलदेवता स्वीकार किया।

गांव के समाजसेवी राकेश शर्मा ने इस अवसर अपने खेतों में तैयार हुई नई मक्की, सेब, गंढौली, राजमाह आदि की पहली फसल भगवान शिव को चढ़ाते हुए बताया कि कुगति गांव की यह वार्षिक जातरें अश्विन माह की प्रथम तिथि को आरम्भ होती हैं । ग्रामीण सिद्ध बाबा के मंदिर में अपनी नई फसल अर्पित कर उनसे जनकल्याण की कामना करते हैं। राकेश शर्मा बताते हैं कि कुछ दशक पूर्व तक ग्रामीण अपने पारम्परिक परिधानों में सुसज्जित होकर गांव के इस वार्षिक उत्सव में भाग लेते थे। लेकिन आधुनिकता व रोजगार की तलाश में निकले युवा अपने लिए पारम्परिक परिधान सिलवाने के लिए समय नहीं निकाल पाए। उन्होंने कहा कि हमें अपनी संस्कृति व परम्परा को कायम रखने के लिए अपने पहनावे व रीति रिवाजों को भी जिंदा रखना होगा।

गांव के सुदर्शन शर्मा जोकि स्वयं सिद्ध चेले भी हैं, बताते हैं कि सिद्ध बाबा द्वारा हमारे पूर्वज को दिए गए वरदान के कारण ही उनके वंशज इस देवचेतना की अनुभूति को प्राप्त कर पाते हैं। उन्होंने कहा कि सिद्ध चेलों द्वारा चिमटे से स्वयं को पीटना वास्तम में संसार में तमाम जीवों को होने वाले कष्टों को स्वयं पर लेने की प्रक्रिया है। सिद्ध चेले द्वारा लाई गई भीक्षा के आटे से बड़े आकार की रोटी पकाई जाती है जिसे स्थानीय बोली में रोट कहा जाता है। यह रोट सिद्ध बाबा के मंदिर में चढ़ा दिया जाता है जिसे चेले प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं में बांट देते हैं।

यहां रोचक यह भी है कि देवचेतना में नाचते सिद्ध चेले श्रद्धालुओं की भीड़ में खड़े किसी भी व्यक्ति बुलाकर उसकी समस्या का समाधान बता देते हैं। तीन दिन तक चलने वाली इन जातरों में पहला दिन निचली कुगति गांव स्थित सिद्ध मंदिर से यह जातर आरम्ब होती है जबकि दूसरे दिन यही प्रक्रिया ऊपरी कुगति के सिद्ध मांदिर से जातर आरम्भ होती है। गांव के विभिन्न स्थानों पर देव चिन्हों के सामने शहनाई, ढोल, नगाड़े, कंसी की ताल पर देवधुन व जयघोष करते हुए जातर निचली कुगति स्थित बड़े से आंगन में आयोजित की जाती है, जहां लोग अपना पारम्परिक गाद्दी डंडारस नृत्य करते हैं।

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